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अशान्तस्य कुतः सुखं

22/10/2018

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भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अशांत व्यक्ति को सुख मिल भी कहाँ सकता है. शांति तो मन से है. भारतीय ज्योतिष में चतुर्थ स्थान को सुख स्थान माना गया. दूसरा स्थान वाणी, धन, कुटुम्ब का है जो कि मानव जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय हैं परन्तु फिर भी इसे सुख स्थान नहीं माना गया अपितु चतुर्थ स्थान जो कि मन का स्थान है उसे ज्योतिष में सुख का स्थान माना गया. वाणी, धन और कुटम्ब चतुर्थ के लाभ स्थान हैं अर्थात् इनके बलवान होने से मन को लाभ होगा परन्तु यह (धन, वाणी, आदि) वास्तविक सुख नहीं है.
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यहाँ तक कि प्राचीन ज्योतिषियों ने लग्न (शरीर), तृतीय (पराक्रम), दशम (कर्म) और नवम (भाग्य) को भी सुख स्थान नहीं कहा. यह सुख में सहायक हैं. इनसे सुख है परन्तु वास्तविक सुख तो तभी है जब मन शांत हो इसलिए इनको मन से अलग रखा गया. और भारतीय ज्योतिष की गहराई तो देखिये. ज्ञान, धन, और पुत्र के कारक गुरु को भी चतुर्थ में वह महत्व नहीं मिला जो शुक्र को मिला है. शुक्र प्रेम है. शुक्र सुख है. शुक्र स्त्री है. शुक्र वैभव भी है. सब आपस में जुड़ा है.

परमशान्ति तो बुद्ध के पास भी थी, शंकराचार्य के पास भी, भगवान राम और भगवान कृष्ण के पास भी. कोई संन्यास ग्रहण कर राजपाट छोड़ गया, किसी ने घर छोड़ दिया, किसी ने आसक्ति रहित रह कर केवल कर्म किया. मन को कैसे कैसे साधा जाता है इसका उदाहरण अनेकों योगीपुरुषों ने हमें दिया. ज्योतिष में भी आपने देखा होगा विभिन्न ग्रहों के अपने योगमार्ग हैं. कोई नग्न रहकर कठिन तप कर इसे साधता है तो कोई वन वन विचरता है, कोई कर्मयोग करता है और कोई किसी अन्य मार्ग से. मन का इस सबमें बड़ा महत्व है.   

मन में शांति होगी तभी सुख की बात आगे बढ़ सकेगी. मन में आग जल रही हो शांति कैसे होगी. इसलिए चतुर्थ में मंगल और सूर्य को अच्छा नहीं माना जाता. यद्यपि बलवान मंगल और सूर्य उतना कष्ट नहीं देते तथापि यह स्थान उनके लिए नहीं है. यह ग्रह दशम में स्थित होकर विशेष बलवान होते हैं. इन्हें निरंतर कर्म करने में सुख मिलता है. किसी के चतुर्थ में मंगल हो और ऐसा व्यक्ति खाली बैठ जाये तो उसका मन अशान्ति से तिलमिला उठेगा.

चतुर्थ में शनि को यद्यपि अच्छा नहीं माना जाता परन्तु शनि भी शांति प्रदान कर सकता है. योगमार्ग में शनि का अपना महत्व है. शनि का शांति प्रदान करने का अपना तरीका है. शनि आशा में विश्वास नहीं रखता. आशा हि परमम् दुःखं. शनि निराश करता है. शनि जीवन का सत्य समझाता है. इतने दुःख और असफलताएँ देता है कि व्यक्ति को समझ आ ही जाता है कि संसार में कुछ नहीं रखा. व्यक्ति को मानना ही पड़ता है कि कुछ भी कर लो, होना तो वही है जो ईश्वर ने रच रखा है. और जिस दिन वह ऐसा मान लेता है, वह दिव्यगति को प्राप्त हो जाता है. पूर्ण समर्पण होते ही ईश्वर मिल जाता है.

ध्यान देने वाली बात मात्र इतनी है कि ग्रहों के बल का विचार अवश्य कर लेना चाहिए. स्थान पर किस ग्रह का प्रभाव है, कौन सी राशि है और उस स्थान का स्वामी/कारक किस स्थिति में है यह सब मन की शांति को प्रभावित करता है. पापग्रह भी अच्छा फल दे सकते हैं. बलवान पापग्रह संघर्ष करने की क्षमता देते हैं और शुभ फल दे सकते हैं परन्तु उनका बल शुभ होना चाहिए. अशुभ फल देने में बलवान हों तो अशुभ ही करेंगे. अपने विवेक से ग्रहों के शुभाशुभत्व का विचार करना ही उपयुक्त है.

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    Author - Archit
    लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः
    येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः
     I

    ​ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. 

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