गुरु से ज्ञान का विचार कहा गया है और बुध से बुद्धि का. ज्ञान और बुद्धि दोनों अलग हैं और एक दूसरे के पूरक भी परन्तु ज्ञान श्रेष्ठ है क्योंकि ज्ञान बुद्धि को सन्मार्ग दिखाता है. ज्ञान बुद्धि को पोषित करता है. ज्ञान हो तो व्यक्ति बुद्धि से ऊपर उठ जाता है और इसके लिए गुरु का पत्रिका में बलवान होना आवश्यक है. बलवान गुरु बुध के दोषों को ढकने की क्षमता रखता है परन्तु गुरु वास्तव में बलवान होना चाहिए. सोचने वाली बात यह है कि बृहस्पति तो बुध को शत्रु समझता है परन्तु बुध बृहस्पति को सम (न मित्र न शत्रु) समझता है. बुध को ज्ञान से कोई परहेज नहीं. बुध का तो एक ही शत्रु है - चन्द्रमा. उसके अतिरिक्त उसको किसी से शत्रुता नहीं. भावनाओं में बहना बुध को नहीं भाता अपितु बुद्धि से प्रत्येक विषय में ऊहापोह करना अच्छा लगता है. जो तर्क की कसौटी पर खरा उतरे वह सत्य ऐसा प्रायः इन लोगों का मानना होता है. यूँ ही समर्पण कर देना इन्हें नहीं आता. जो लोग बात बात में कारण खोजते हैं प्रायः ऐसे लोग बुध प्रभावित होते हैं. ईश्वर को तो समर्पण चाहिए, संदेह नहीं. जहाँ संशय हो वहाँ ईश्वर का क्या काम. इसलिए बुध को बृहस्पति शत्रु समझता है. बुध यदि अशुभ प्रभाव में हो तो बुद्धि संशय युक्त हो जाती है और ऐसे व्यक्ति की खोज (संशय अथवा भ्रम) कभी समाप्त ही नहीं होती - यदि पत्रिका में गुरु बली न हो तो. गीता में भगवान कृष्ण ने कहा भी है, "नायं लोकोSस्ति न परो सुखं संशयात्मनः". अर्थात् संशयग्रस्त व्यक्ति के लिए न तो इस जन्म (लोक) में और न ही परलोक में कोई सुख है. ध्यान देने वाली बात यह है कि बृहस्पति को सुख का कारक भी माना जाता है. उस सुख का जो भौतिक के अतिरिक्त है. भौतिक सुखों का कारक तो शुक्र है. बुद्धि यदि भ्रमित हो जाये तो अच्छा नहीं इसलिए राहु के साथ बुध की स्थिति को बहुत से ज्योतिषी अच्छा नहीं समझते. साथ ही ज्ञान शुद्ध होना चाहिए. ज्ञान का भ्रष्ट होना अच्छा नहीं इसलिए राहु के साथ गुरु की स्थिति का विचार भी सोच समझकर करने को कहा जाता है. अच्छा तो यही है कि बुध और गुरु दोनों ही पत्रिका में बलवान तथा शुभ स्थिति में हों. ऐसा व्यक्ति कैसी भी परिस्थिति में अपने ज्ञान और विवेक से सफलता का मार्ग ढूँढ ही निकलता है. पत्रिका में बुध तो बलवान हो परन्तु गुरु अशुभ प्रभाव में हो अथवा बलहीन हो तो ऐसा व्यक्ति, ज्ञान हो न हो, चतुर बहुत होता है. उन्हें दूसरों को चुप कराना खूब आता है. बहस में उनसे जीतना कठिन होता है परन्तु भीतर तो खोखलापन रहता ही है. नवग्रहों में बुध से गुरु बली है. गुरु से बली केवल सूर्य और चन्द्र हैं. यदि सूर्य, चन्द्र अथवा दोनों पत्रिका में महाबली हों तो व्यक्ति अपना उचित अनुचित खूब समझता है. उसके आत्मबल अथवा मनोबल से बुद्धि उसके वश में रहती है. अपने लिए सही मार्ग क्या है यह जानने के लिए उसे किसी पुस्तक की अथवा बाहरी गुरु की आवश्यकता नहीं होती. उसे भीतर ही गुरु मिल जाता है अथवा प्रकृति ही उसे ज्ञान का मार्ग/साधन, सही गुरु उपलब्ध कराती चलती है. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |