कई बार जब वात पित्त या कफादि जनित रोग होता है तो इनके साथ ही उन्माद भी हो जाता है. ऐसे में रोग को कई बार दो भागों में देखा जा सकता है. शारीरिक और मानसिक. शारीरिक स्पष्ट हो और अधिक हो तो लोग सहायता कर भी देते हैं परन्तु मानसिक पक्ष हावी हो तो बहुत लोग सहन नहीं कर पाते. पत्रिका देखते हुए कई बार प्रश्न आता है, "हमारी सास का समय कब आएगा" अथवा "हमारी दादी कब प्रस्थान करेंगी क्योंकि हम थक चुके हैं". कई लोग अपने बड़ो को अलग कर देते हैं. पर बचना क्या कोई समाधान है? हमारे मोहल्ले में एक बूढ़ी महिला थी जो घर के लोगों पर गुस्से में कुछ न कुछ बड़बड़ कर देती थी. घर के लोगों ने उसे खटिया समेत घर के बाहर चौक में रख दिया. उसकी बड़बड़ बन्द नहीं हुई. बेटा, पोता और बहू कुछ दिन तो सुनते रहे फिर उन्होंने भी पलट कर चिल्लाना शुरू कर दिया. बुढ़िया एक दिन शरीर छोड़ कर चल बसी. कालचक्र घूमता रहा. कुछ वर्षों बाद बूढ़ी महिला के बेटे को भी वही रोग लगा. वह भी परिवार वालों पर गुस्सा करने और चिल्लाने लगा. उसे भी बेटे ने खटिया समेत घर के बाहर किया. समय के साथ वह भी देह छोड़ गया. बाद में पोते ने मोहल्ला छोड़ दिया तो मुझे पता नहीं आगे क्या हुआ. पर ऐसा लगता है यह वातजन्य उन्माद के लक्षण थे. ज्योतिष एवं आयुर्वेद दोनों में उन्माद की चर्चा है. इनके अलग अलग प्रकार और लक्षण हैं. अधिक हँसना, क्रोध करना, बिलखना, चिल्लाना, हाथ-पाँव पटकना, दूसरे को धमकाना, शरीर का पीला पड़ना, अतिनिद्रा, एकान्त में रहना (किसी से न मिलना जुलना) इत्यादि लक्षण उन्माद के होते हैं. शारीरिक रोग में तो बहुत लोग साथ दे देते हैं परन्तु शारीरिक रोग से जो मानसिक समस्या उत्पन्न होती है उसके प्रति किसी की सहानुभूति नहीं होती. तब तो अपने भी कहने को अपने होते हैं. कोई भूखा हो तो दस लोग खाना दे देंगे परन्तु मानसिक विकलता (रोगजनित उन्माद) में कोई साथ नहीं देता. हाँ, उसकी बातों का बुरा अवश्य मान बैठते हैं. अन्य उन्मादों की अपेक्षा वातजन्य उन्माद में विशेष यह है कि वातजन्य उन्माद की चिकित्सा में स्नेहपान को उपचार कहा है और स्नेह ही ऐसे रोगी को नहीं मिलता. उलटे लोग उसकी निन्दा करने लगते हैं. लोग उसे अपने से दूर कर देना चाहते हैं. संसार भर की सहायता करेंगे परन्तु ऐसे व्यक्ति से बचने का प्रयत्न करेंगे. वात, पित्त, कफादि जनित उन्माद यद्यपि युवाओं में भी देखे जाते हैं परन्तु वृद्धावस्था में अधिक (या कहें कि सरलता से) दृष्टिगोचर होते हैं. वृद्धावस्था शनि के अधिकारक्षेत्र में है. रोग और दुःख का कारक शनि है और हताशा तथा अकेलापन भी शनि देता है. ज्योतिष में उन्माद के योग कौन से हैं उन पर चर्चा कभी और करेंगे. करमगति टारे नहीं टरी. कर्मफल तो मिलेंगे. पुत्र ने अपनी माँ को घर से बाहर किया तो उसकी भी दुर्गति हुई. कठिन समय से बचकर भागने से कठिन समय बीत नहीं जायेगा. वह अपनी गति से ही चलेगा. बृहस्पति के झोले में रखे खरबूजे कैसे राजकुमारों के सिरों में बदल गए यह कथा तो सबने ही सुनी होगी. तो जो आ रहा है उसे स्वीकार करने में भी भलाई है. जो कष्ट हम भुगत रहे हैं उसका दोष हमारा ही है. यह लेख मैं लिख रहा हूँ अतः धर्मात्मा हूँ और मुझसे जीवन में कभी भूल नहीं हुई ऐसा कहना ठीक नहीं. संसार में सब ग्रहों के प्रभाव में बन्धे हैं. जब तक ईश्वर चाहेगा मैं भी ग्रहचाल के अनुसार कर्म करूँगा. प्रार्थना ईश्वर से यही है कि शरीर, मन और बुद्धि को यथासंभव स्वस्थ रहने का आशीर्वाद दे. ॥हरिः ॐ॥ |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |