![]() "यह लोग कैसे सुनते ही उपाय बता देते हैं, आपको सोचना पड़ता है". यह शब्द मुझे मेरी पत्नी ने कहे कल रात जब मैं सपरिवार एक ज्योतिष का कार्यक्रम देख रहा था. जब से डेल कार्नेगी की पुस्तक पढ़ी है तब से तर्क वितर्क में मेरी इतनी रूचि नहीं रही किन्तु यह एक विचार तो है ही. क्या उपाय बताना इतना सरल है कि आपने समस्या सुनी और उपाय बता दिया. कम से कम मुझे तो यह तकनीक नहीं आती. कोई मुझे कह रहा था आजकल ज्योतिषी भविष्यफल कम और उपाय अधिक बताते हैं. और कुछ उपाय तो बड़े ही विचित्र होते हैं जो ज्योतिषी लोगों द्वारा सुझाये जाते हैं. उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति ने पूछा कि उसके साले के विवाह का योग नहीं बन पा रहा. ज्योतिषी ने उपाय बताया, "आड़ू की गुठलियों में ड्रिल मशीन से छेद कर के उसमें सुरमा भरो और घास के नीचे दबा दो. ऐसा सात दिनों तक करना है". वो व्यक्ति पुणे का रहने वाला था. मुझे यह तो ज्ञात नहीं कि पुणे में आड़ू मिलते हैं या नहीं, किन्तु आड़ू की गुठलियों में ड्रिल मशीन से छेद करना कम से कम मेरे लिए तो एक बड़ा ही जटिल कार्य है.
एक बात जो मुझे बड़ा विचलित करती है वो यह कि कुछ ज्योतिषी गण इतनी सरलता से उपाय बता देते हैं कि वो लोग जो बड़े परेशान हैं वो अपना उपाय समझ कर उसे अपना लेते हैं. उदाहरणार्थ, एक ज्योतिषी ने कहा, "घी कि ज्योत तो नहीं जलाते आप?", तो सामने वाले व्यक्ति ने कहा, "जलाते थे, आपके कार्यक्रम देखने के बाद बंद कर दी". यदि वो किसी एक आधे व्यक्ति पर लागू होता भी है तो सभी लोग उसे क्यों मानें. इन महाशय ने क्यों उनका कार्यक्रम देखने के बाद दीया जलाना बंद किया. इस प्रकार उलटे सीधे उपाय अपनाकर लोगों के हाथ अधिकतर परेशानी ही लगती है. यही कारण है कि कई प्रकार के यन्त्र, कवच, आदि इस समय धड़ल्ले से बिक रहे हैं. कई लोकप्रिय अभिनेतागण (एक्टर) भी ऐसे विज्ञापनों (एड्स) में देखे गए हैं. हज़ारों में उनका मूल्य होने पर भी ऐसी वस्तुएं सरलता से बिक जाती हैं. मेरी व्यक्तिगत सोच तो यही है कि सही उपाय बताना ही सबसे जटिल कार्य है. किसी को सही उपाय बताना आ गया तो ज्योतिष आ गया. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |