शुक्र और शनि परस्पर मित्र है. शुक्र सुख का कारक है तो शनि दुःख का. कितनी अनोखी बात है. सुख और दुःख एक दुसरे के मित्र हैं और दोनों में से कोई भी बृहस्पति को अपना मित्र नहीं मानता. क्यों? क्योंकि बृहस्पति ज्ञान है. शनि के लिए बृहस्पति सम (neutral) है परंतु मित्र तो शनि के लिए भी नहीं है. भौतिक सुखों में रमा हुआ व्यक्ति ज्ञान की बात बताने वाले को अपना शत्रु ही समझेगा और दुःख से पीड़ित व्यक्ति को भी यदि आप ज्ञान की बात बताओ तो उसे समझ नहीं आती. कारण कि उसे सुख चाहिए, ज्ञान नहीं. भारतीय ज्योतिष की यह छोटी सी बात धार्मिक ग्रंथों में कही गयी बड़ी बड़ी बातों का सार है. भौतिक सुख शुक्र देता है और अधिकतर भौतिक सुख मिलते हैं धन (रुपयों) से और रुपयों के पीछे भागने वाले के हाथ में अंत में दुःख ही लगता है. आज लोगों के पास धन तो प्रचुर मात्रा में इकठ्ठा होने लगा है परंतु साथ ही अवसाद (depression) एवं मानसिक तनाव (stress) भी बहुत है. शुक्र और शनि के स्वरूपों और गुणों में जितना विरोधाभास है उसे देखकर सहसा ऐसा समझ में नहीं आता कि यह दो ग्रह मित्र कैसे हैं और यहाँ तक कि शनि तो शुक्र की राशि तुला में जाकर उच्च का होता है. परंतु इन दोनों के गुण-दोष जिस प्रकार जुड़े हैं वह अपने आप में अत्यंत रोचक है. शुक्र जवान है परंतु शनि वृद्ध है. शुक्र वय से वृद्ध भी हो जाये तो अपने को वृद्ध नहीं मानता जबकि शनि इस बात की चिंता ही नहीं करता कि वह कैसा दीखता है. इसीलिए शनि प्रभावित व्यक्ति साधारणतः वय से बड़े दीखते हैं. शुक्र ऐश्वर्य है, और शनि प्रभावित व्यक्ति यदि ऐश्वर्यशाली भी हुआ तो अथक परिश्रम के बाद होगा. चूंकि शुक्र में आकर्षण बहुत है तो व्यापार का विचार शुक्र से भी किया जाता है. वहीं शनि नौकरी बताता है. स्वरुप की बात करें तो शुक्र परमसौंदर्यवान है जबकि शनि कठोर शरीर वाला, दुबला, बड़े दाँतों वाला और लंगड़ा कर चलने वाला है. शुक्र रजोगुणी है और शनि तमोगुण प्रधान है. शुक्र धन वैभव से संपन्न है जबकि शनि दरिद्रता का कारक है. शुक्र कलावंत है, बलवान और गुणवान है इसलिए भौतिक रुप से सुखी है. शनि आलसी है. शुक्र व्यक्ति को वाहन देता है, धन देता है, रूप और आकर्षण देता है साथ ही वीर्य का कारक होने के कारण वीर्यवान बनाता है. शुक्र यदि पत्रिका में बलवान हो तो व्यक्ति में कामवासना प्रचुर मात्रा में होती है और ऐसे व्यक्ति प्रायः प्रेम प्रसंगों में पड़े हुए पाए जाते हैं. इसका सीधा सीधा कारण है कि भौतिक सुख चाहने वालों के लिए रतिसुख एक बहुत बड़ा सुख है. परंतु दुखी व्यक्ति को अपने दुःखों से मुक्ति मिले तो वह कामवासना की ओर ध्यान दे. आजकल ऐसा बहुत सुनने में आता है और आपने भी सुना ही होगा कि अवसाद (depression) अथवा तनाव (stress) के कारण लोगों की मैथुन में प्रवृत्ति घट रही है. एक ही बात इन दोनों ग्रहों में खास मिलती है. वात और कफ की दोनों में प्रधानता है. रोगों की बात करें तो शुक्र किसी की पत्रिका (जन्मकुंडली) में यदि बिगड़ा हुआ हो (अशुभ हो) तो मधुमेह, मूत्र संबंधी रोग, वीर्य संबंधी रोग, शारीरिक संबंधों से होने वाले रोग देता है. ऐसे व्यक्ति को दुष्ट व्यक्तियों से और यहाँ तक कि अपनी स्त्री से भी भय हो सकता है. दूसरी ओर अशुभ शनि सीधे सीधे व्यक्ति का सुख छीन लेने का काम करता है. दरिद्रता देना उसमें प्रमुख है. किसी के पास धन ही न हो तो आधा भौतिक सुख तो वैसे ही चला गया. शनि रोग का भी कारक है. जोड़ों में दर्द तथा वातदोष से होने वाले कष्ट शनि ही देता है. शनि अशुभ हो तो व्यक्ति ऐसे कर्म करता है जिससे स्वयं को क्लेश हो. शुक्र वीर्य है तो शनि स्नायु है. शनि से स्नायु संबंधी रोग भी समझना चाहिए. इस सबके बाद भी यह ध्यान रखने वाली बात है कि शुक्र में इतना सामर्थ्य है कि वह शनि के दोषों को हर ले. किसी की जन्मकुंडली में शुक्र बलवान हो और शनि निर्बल हो तो भी उतना दुःख नहीं मिलेगा जितना शुक्र के निर्बल होने पर मिलता. उदहारण के लिए वसंत ऋतु में दोपहर की धूप में छत पर बैठा जा सकता है परंतु ग्रीष्म ऋतु में यह कठिन है. शुक्र और शनि की मित्रता का एक अर्थ यह भी लिया जा सकता है कि सुख और दुःख साथ साथ चलते हैं. सुख आता है, दुःख जाता है और दुःख आता है तो सुख जाता है और बहुत बार तो दोनों एक साथ भी पाए जाते हैं. कई बार वर्तमान का सुख भविष्य के दुःख का कारण बनता है. कितनी अनोखी बात है कि शनि बारहवे भाव का कारक है और शुक्र ही एक ऐसा ग्रह है जो बारहवे भाव में प्रसन्न रहता है क्योंकि बारहवाँ भाव अन्य विषयों के साथ साथ भौतिक सुखों और शयनकक्ष को भी दर्शाता है. यह भी एक मज़ेदार बात है कि बारहवाँ भाव अनिद्रा, ऋण (क़र्ज़) और कारागार को भी बताता है. यह लेख मुख्यतः शनि शुक्र की मित्रता को लेकर था. जन्मपत्रिका में किसी भी ग्रह के फल अन्य ग्रहों पर, भावों में उनकी कैसी स्थिति है आदि पर भी निर्भर करती है. छोटा सा उदाहरण - कोई व्यक्ति अपने घर में जितना प्रभावशाली होता है, हो सकता है एक किराये के घर में उसका उतना प्रभाव न हो. अतः किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले विवेक से काम लेना चाहिए. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |