जब भी ऐसा कुछ होता है जिससे व्यक्ति अकर्मण्यता, शोक अथवा कायरता के चलते भागने का मार्ग अपनाता है तो शनिदेव व्यक्ति की उस चालाकी को पकड़ लेते हैं. व्यक्ति सोचता है वह ईश्वर के निकट जा रहा है, दुःखों से मुक्ति पा रहा है अथवा अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है परन्तु वास्तव में वह शनिदेव के दुष्प्रभावों की ओर बढ़ रहा होता है. कुरुक्षेत्र में जब अर्जुन को मोह हुआ तो उसने भगवान कृष्ण से कहा कि कर्मयोग की अपेक्षा ज्ञानयोग का ही मार्ग क्यों न चुन लूँ क्योंकि ज्ञान तो श्रेष्ठ है. ऐसा करने से उसे युद्ध भी न करना पड़ता और जीवन भी सफल हो जाता. परन्तु भगवान कृष्ण ने उसे ऐसा करने न दिया. क्यों? उन्हें पता था अर्जुन के वह वचन स्नेह से भरे तो थे परन्तु साथ ही कायरतापूर्ण एवं शोकपूर्ण भी थे. मेरे पिताजी हमेशा कहा करते हैं, "भागना तो सरल है. गृहस्थ रह कर ईश्वर में ध्यान लगाए रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना ही वास्तव में पराक्रम है. ईश्वर ने जीवन भागने के लिए थोड़े ही दिया है." लोग नौकरी छोड़ कर व्यापार करते हैं फिर उन्हें पता चलता है कि व्यापार भी उतना सरल नहीं. कई लोग किसी को कुछ कहते नहीं यह सोचकर कि फलाँ व्यक्ति को बुरा न लग जाये. कई लोग अपने अधिकार के लिए आवाज़ नहीं उठाते और हानि होते रहना स्वीकार कर लेते हैं. कई लोग सम्बन्ध नहीं रखते कि कहीं दुःख न हो परन्तु क्या दुःख समाप्त हो जाते हैं. बीते कुछ वर्षों में तो यह भी खूब देखने में आ रहा है कि माता पिता अपने बच्चों को डाँटते नहीं. उन्हें लगता है बच्चा रोये ना. बच्चा उन्हें बुरा न कहे. पर क्या ऐसा होता है? देखने में तो यह आता है कि जो बच्चा अधिक लाड़ प्यार में पलता है वह हठी हो जाता है. जीवन में होने वाले दुःखों का कारक शनि है. क्यों? क्योंकि आलस्य का, ऊँघने का कारक भी शनि है. जो व्यक्ति आलसी हो उसका शरीर कितने दिन स्वस्थ रह सकेगा. अतः रोग का कारक भी शनि है. जो व्यक्ति आलसी हो, रोगी हो, ऊँघता रहता हो तो क्या उसे सम्मान मिलेगा? इसीलिए शनि अपमान का भी कारक है. पशुओं में शनि भैंस है. कई बार आलसी अथवा मूर्ख लोगों को नौकरी से निकाल दिया जाता है अथवा समय समय पर अपमानित किया जाता है और उन्हें पता भी नहीं होता कि उन्हें क्यों निकाला गया अथवा अपमानित किया गया क्योंकि अपने दोषों को देखने की क्षमता दुर्बल शनि वाले व्यक्ति में नहीं होती. यूँ तो बुद्धि का कारक बुध है परन्तु मूर्खता का विचार शनि से भी करें तो अनुचित नहीं होगा. शनि दास (नौकर) है. इस बात का अर्थ जो जैसा लेना चाहे वैसा ले सकता है. चाहे तो साधारण नौकरी में अथवा अध्यात्म के क्षेत्र में. उदाहरण के लिए - संन्यासी के लिए इन्द्रियों का दास होना अच्छा नहीं. कोई संन्यासी इन्द्रियों का दास है तो फिर काहे का संन्यासी. फिर तो शनिदेव के दुष्प्रभाव उसे झेलने ही पड़ेंगे. इसी प्रकार शनि ऋण का भी कारक है. जब तक सभी लोगों के ऋण ने चुका दिए तब तक कितना भी संसार से भाग लो, शनिदेव पीछा न छोड़ेंगे. शनि पत्रिका में बिगड़ा हुआ हो तो यह सब कष्ट देता है या कहें कि ऐसे स्वभाव देता है. बलवान शनि वाला व्यक्ति धैर्यवान और शांत होता है. स्वाभिमानी होता है. पत्रिका में द्वितीय स्थान पर शनि का प्रभाव हो तो व्यक्ति कम बोलता है. शनि स्थिरता देता है परन्तु बिगड़े हुए शनि की स्थिरता और बलवान शनि की स्थिरता के भेद को जो समझ सके वही कुशल ज्योतिषी है. बलवान शनि वाला व्यक्ति भागता नहीं स्वीकार करता है. केवल देखता नहीं उसे समझता है. तीर्थ के दर्शन मात्र नहीं करता अपितु उसे अंगीकार करता है. गंगाजल से केवल तन को नहीं धोता अपितु मन को भी धोता है. उसे अलग से संन्यासी नहीं होना पड़ता. वह तो स्वभाव से ही विरक्त होता है. शनि जब संन्यासी होता है तो कुछ छोड़ता नहीं, उससे तो सब छूट जाता है. उसके लिए वन में जाना आवश्यक नहीं. वह महल में भी रहे तो संन्यासी ही रहता है. कायरता, शोक, अकर्मण्यता अथवा आलस्य आदि के चलते अपने कर्म को छोड़ कर जब कोई भागने का मार्ग अपनाता है तो शनिदेव के विपरीत गुणों में वृद्धि ही करता है, कम नहीं करता. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |