आज महाशिवरात्रि है और आज शुक्रवार भी है. बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान शिव और माता पार्वती ने शुक्राचार्य को पुत्र रूप में स्वीकार किया था अतः शुक्रवार की यह महाशिवरात्रि भी कोई कम पावन संयोग नहीं है. जिस मृतसंजीवनी विद्या का भगवान शिव ने स्वयं निर्माण किया था वह उन्होंने दैत्यों के परम गुरु शुक्राचार्य को ही प्रदान की थी परंतु तब क्या हुआ जब उन्होंने भगवान शिव की सेना के ही विरुद्ध इस विद्या का प्रयोग किया? अंधकासुर का जब भगवान शंकर से युद्ध हो रहा था तो कभी शिव सेना भारी पड़ती थी तो कभी अंधकासुर की. अंधकासुर की सेना के महाबली दैत्य जब मारे जाने लगे तो उसने अपने गुरु शुक्राचार्य से प्रार्थना की कि अपनी विद्या से उन दैत्यों को पुनः जीवित करें. शुक्राचार्य को बड़ी दुविधा हुई. जिससे विद्या पाई उसी के विरुद्ध उसका प्रयोग कैसे करें? परंतु अंत में यह विचार किया कि शरण में आये की रक्षा करना अपना कर्त्तव्य है अतः उन्होंने मारे गए सभी दैत्यों को पुनर्जीवित कर दिया. नंदी एवं अन्य शिवगणों को यह देख कर बड़ा विस्मय हुआ. "कैसे कैसे प्रयास कर के तो उन दैत्यों को मारा था और अब शुक्राचार्य उन्हें फिर जीवित कर रहे हैं. ऐसे में फिर हमारे प्रयास करने से क्या लाभ?" ऐसा विचार कर नंदी अन्य गणों को लेकर भगवान शंकर के पास पहुँचे. भगवान शंकर ने जब ऐसा सुना तो बोले, "तुम लोग शुक्राचार्य को बांध कर मेरे पास ले आओ". फिर क्या था. नंदी और अन्य शिवगण बड़े पराक्रम का परिचय देते हुए दैत्यों के मध्य से शुक्राचार्य को उठा लाये. भगवान शंकर कुछ बोले नहीं. उन्हें पकड़ा और निगल कर अपने शरीर में धारण किया. दैत्यों के लिए शुक्राचार्य का बड़ा सहारा था. अब जब शुक्राचार्य नहीं रहे तो मृत्यु से कौन बचाये, तब अंधकासुर ने उनका मनोबल बढ़ाया और युद्ध को रुकने नहीं दिया. उधर शुक्राचार्य भगवान शंकर के उदर में से बाहर निकलने का मार्ग ढूंढने में लगे थे परंतु ऐसा लगता था मानो सारा ब्रह्माण्ड भगवान शंकर के भीतर ही समाया हुआ है. कहीं से कोई रास्ता न दीख पड़ता था. बाहर निकलने का कोई मार्ग जब सूझता ना दिखाई दिया तो उन्होंने भगवान शंकर की ही स्तुति करने का निश्चय किया. तब भगवान शंकर की इच्छा से वे शुक्ररूप में भगवान शंकर के लिंग से बाहर निकले. इसलिए ही उन भार्गव का नाम शुक्र हुआ और इसलिए ही भगवान शंकर ने उन्हें पुत्र स्वीकार किया. पूर्वकाल में शुक्राचार्य ने घोर तपस्या द्वारा जब शिव को प्रसन्न किया था तो शिव ने वरदान देते हुए कहा था कि जो भी एक वर्ष तक शुक्रवार को "शुक्रेश्वर लिंग" (शुक्राचार्य द्वारा स्थापित शिवलिंग जो कि काशी में है) की आराधना करेगा वह वीर्यवान होगा, सुखी होगा और अनेक विद्याओं का ज्ञाता होगा. ध्यान देने योग्य बात यह है कि ज्योतिष में भी शुक्र को सुख का कारक माना गया है. वीर्य का कारक भी शुक्र है. कला (जैसे संगीत, कविता, अभिनय आदि) के क्षेत्र में सफल होने के लिए भी शुक्र का बलवान होना आवश्यक है क्योंकि शुक्र जैसा आकर्षण किसी के पास नहीं है. साधारणतः ज्योतिषी शुक्र के लिए शिवोपासना बताते नहीं है परंतु जैसा शिव ने शुक्र को वरदान दिया था उसके अनुसार तो श्रद्धापूर्वक की गयी शुक्रेश्वर शिव की उपासना से शुक्र संबंधी विषयों में लाभ होना तय है. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |