प्रथम भाव को लग्न भी कहते हैं. प्रथम भाव अर्थात पत्रिका का पहला भाव - जहाँ से पत्रिका आरम्भ होती हो. प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश अथवा प्रथमेश भी कहते हैं. पत्रिका चाहे किसी की भी हो, भली प्रकार फलादेश करना है तो लग्न का अध्ययन तो करना ही होगा. लग्न को यदि ठीक ढंग से न समझा तो कहीं कोई भूल होने की संभावना सदा बनी रहेगी. लग्न जन्मपत्रिका का पहला भाव है. यहाँ से जन्मपत्रिका आरम्भ होती है. अतः किसी बात के आरम्भ का विचार करना हो तो इस भाव से किया जाता है. जीवन का आरम्भ इस भाव से है. जीवन आत्मा से है अतः सूर्य इस भाव का कारक है. सूर्य (जो कि लग्न का कारक है) का विचार करना भी आवश्यक है. दिन अथवा नैसर्गिक प्रकाश तभी आता है जब सूर्य आता है और दिन कितना सुन्दर होगा यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सूर्य बादलों के पीछे है अथवा खुले आकाश में है. दिन भी एक प्रकार का छोटा जीवन ही तो है तो रात पर जा कर समाप्त होता है. अंतर बस यही है कि बीते दिन की बातें हम याद रख पाते हैं. बचपन का विचार इस भाव से है. व्यक्ति का बचपन कैसा रहेगा, जन्म के समय कोई कष्ट होने वाले हों तो भी यहाँ से इसका विचार किया जाता है. बचपन में होने वाली छोटी छोटी घटनाओं का भी मनुष्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है अतः बचपन को अच्छे से समझ लिया तो बहुत कुछ अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति का चरित्र कैसा रहेगा, उसके विचार कैसे होंगे, उसमें आत्मविश्वास कितना होगा इत्यादि. यूँ तो स्वास्थ्य के विचार के लिए साधारणतः छठे स्थान को सुझाया जाता है परन्तु लग्न से भी पता चलता है कि जातक का शरीर, स्वास्थ्य कैसा रहेगा. सुख मिलना एक बात है और सुखों को भोग पाना एक और. गुण होना एक बात है और गुणों का प्रकाश में आना एक और. जो लोग कहते हैं कि उनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है, हो सकता है उनके लग्न भाव में इस बात का उत्तर छुपा हो. जैसे अन्य भावों का अध्ययन करते हैं वैसे ही लग्न का भी अध्ययन करना चाहिए. भावों का अध्ययन कैसे करें इस पर कभी और चर्चा करेंगे. मोटे तौर पर इतना कह सकते हैं कि लग्न, लग्नेश का सम्बन्ध गुरु, शुक्र, बुध, चंद्र से हो तो अच्छा. केंद्र और त्रिकोण के स्वामी से हो तो अच्छा. यदि शनि, मंगल, राहु, केतु अथवा दुःस्थानों से लग्न लग्नेश का सम्बन्ध हो तो साधारणतः अशुभ कहा जाता है. वैसे कई बार प्रश्न कैसा है इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. एक बार लग्न को यदि अच्छे से समझ लिया तो जातक के व्यक्तित्व को समझना, साथ ही अन्य भावों से सम्बंधित प्रश्न का फलादेश करना बड़ा सरल हो जाता है. यही कारण है कि ज्योतिष में प्रथम भाव के अध्ययन को अत्यंत महत्त्व दिया जाता है. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |