राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः। भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा॥ गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सुभाषित के इस श्लोक का बरबस ही स्मरण हो आया. जनता द्वारा किये गए पापों का उत्तरदायी राजा होता है. इसी प्रकार राजा यदि कोई पाप करे तो पुरोहित (ज्योतिष में साधारणतः गुरु, पर गुरु और शुक्र दोनों), पत्नी यदि कोई पाप करे तो पति और शिष्य द्वारा किये गए पापों का उत्तरदायी गुरु होता है. ऐसा गुरु का स्थान है. समाज को बनाने में माता पिता का जितना योगदान है उतना ही गुरु का भी है अतः गुरु को उत्तरदायी तो होना ही चाहिए. ज्योतिष में नौ ग्रह हैं और उनमें से जो दो सबसे शुभ ग्रह हैं वह हैं शुक्र और बृहस्पति. एक देवताओं के गुरु हैं और दूसरे असुरों के. दोनों ही व्यक्ति को सुख देने वाले हैं परन्तु भारतीय ज्योतिष में गुरु का स्थान शुक्र से ऊँचा है क्योंकि गुरु सत्त्व गुण की अधिकता वाला ग्रह है और शुक्र रजोगुण प्रधान है. बलवान और पापरहित शुक्र व्यक्ति में प्रेम का संचार करता है. उसे जीवन जीना सिखाता है. शुभ कर्म कराता है. संगीत, सुगन्धि, सवारी से युक्त हो कर ऐसे व्यक्ति का जीवन एक उत्सव बन जाता है. शुक्र का द्वितीय स्थान पर प्रभाव हो तो व्यक्ति में काव्य प्रकट होता है. गुरु की दृष्टि यदि शुक्र पर हो तो यह राजयोग माना गया है क्योंकि गुरु, शुक्र द्वारा प्रदत्त सुख भोग में खो जाने से व्यक्ति को बचाता है. मेरे पिताजी के गुरु की पत्रिका में बृहस्पति और शुक्र का शुभ योग था. वे अपने कार्य में दक्ष थे, उनके पास सब वैभव था, सब ओर उनका सम्मान था, परन्तु फिर भी वे अहंकार शून्य एक सज्जन पुरुष थे. मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जो उनके विषय में कुछ बुरा कहता हो. जिनके स्मरण मात्र से मन को अच्छा लगे, शांति मिले ऐसा सुन्दर उनका व्यक्तित्व था. ऐसा गुरु शुक्र के शुभ योग का प्रभाव होता है. गुरु को शुक्र से भी शुभ माना गया है. गुरु ज्ञान देता है. व्यक्ति को विद्वान् बनाता है और व्यक्ति के पास ज्ञान हो तो उसे सम्मान मिल ही जाता है. संस्कृत में एक श्लोक में कहते भी हैं कि विद्वान् और राजा की भला कैसी तुलना. राजा तो मात्र अपने देश में पूजा जाता है परन्तु विद्वान् तो अपने ज्ञान के बल पर सब ओर सम्मान पाता है. ऐसा ही शुक्र के लिए भी कह सकते है क्योंकि शुक्र व्यक्ति को कला, संगीत आदि देता है. विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन। स्वदेशी पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥ गुरु की महिमा अनन्त है और गुरु का पद हिन्दू धर्म में बहुत ऊँचा है परन्तु सभी व्यक्ति गुरु बनाने योग्य हों ऐसा भी नहीं होता. ज्योतिष इस विषय में बहुत स्पष्ट है. जन्मपत्रिका में गुरु और शुक्र दोनों अशुभफलदायक हो सकते हैं. इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दोनों नैसर्गिक शुभ ग्रह हैं अथवा गुरुपद पर आसीन हैं. भ्रष्ट दोनों हो सकते हैं और कई बार तो वह गुरु होता भी नहीं. वह तो राहु होता है जो गुरु का रूप धरकर लोगों को ठग रहा होता है. देखादेखी में अथवा औरों को बताने के लिए बड़े बड़े लोगों को गुरु बनाना भी क्या गुरु को पाना है. संत कबीर ने कहा भी है कि जैसे पानी छान कर पीते हो ऐसे ही गुरु भी समझ बूझ कर बनाओ अन्यथा परिणाम भुगतना पड़ सकता है. गुरु कीजिये जानि के, पानी पीजै छानि। बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥ |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |