मेरे परिचय में एक चाचाजी हैं जिनका लड़का बुलेट (मोटरसाइकिल) के लिए हठ कर रहा था. चाचाजी ने उसे पूछा कि ऐसी क्या बात है बुलेट में जो वो घर की गाड़ी छोड़ कर बुलेट चाहता है. लड़के ने जवाब दिया कि उस गाड़ी की आवाज़ और बनावट जानने वालों की दृष्टि में एक दबंग व्यक्ति की छवि बनाती है. चाचाजी ने जो उत्तर दिया उसके बाद लड़का तो कभी बुलेट के लिए उन्हें बोला नहीं और मुझे उनका वह उत्तर बड़ा विशेष लगा. चाचाजी बोले, "ऐसी दबंग आवाज़ वाली गाड़ियां वो रखते हैं जो भीतर से घबराये हुए हों या फिर जिन्हें अपना रौब जमाने के लिए गाड़ी की आवाज़ और बनावट का सहारा लेना पड़े. अपने अंदर ऐसा आत्मविश्वास और गुण पैदा करो कि कोई भी गाड़ी जो तुम चलाओ, या कोई वस्त्र तुम पहनो उसी में रौब आये". जीवन में मनुष्य को बहुत से भय हैं और उनमें से एक है निर्बल होने का. निर्बल व्यक्ति के लिए जीवन बहुत कठिन है. किसी बात में यदि कोई लाचार हो तो उससे बड़ा कष्ट कोई नहीं. हमारी दसवीं कक्षा की हिंदी व्याकरण की पुस्तक में मैंने पढ़ा था, हे देवी! यह नियम, सृष्टि में सदा अटल है, रह सकता है वही सुरक्षित, जिसमें बल है । निर्बल का है नहीं जगत में कहीं ठिकाना, रक्षा साधन उसे प्राप्त हों, चाहे नाना ॥ मुझे यह तो नहीं पता कि यह पूरी कविता है अथवा इतना ही है और इसका रचियता कौन है, परन्तु जो भी है बड़े सरल शब्दों में जीवन का एक सत्य है. निर्बल व्यक्ति कुछ कर तो सकता नहीं, तो या तो वह दूसरों की निंदा में रस लेने लगता है अथवा किसी ऐसे निर्बल को ढूंढ कर कष्ट देता है जो उससे भी निर्बल हो. बड़े बड़े कारखानों के कर्मचारी और यहाँ तक कि अधिकारी भी इससे (निंदा रस से) अछूते नहीं. "आप हारे, बहू को मारे" कहावत भी लगता है इसलिए ही कही गई है. संस्कृत में एक श्लोक भी है, अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च । अजापुत्रं बलिं दद्यात् देवो दुर्बल घातकः॥ न तो अश्व को, न गज को, न वाघ को और न किसी और को ही कभी बलि चढ़ाया जाता है. यदि किसी को बलि चढ़ाया जाता है तो बेचारे अजापुत्र (बकरी के बच्चे) को. दुर्बल के लिए तो देव भी घातक सिद्ध हो सकते हैं . जगत में दुर्बल होना बड़ा ही घातक है. बहुत पहले दूरदर्शन पर एक कार्यक्रम आता था. नाम मुझे ध्यान नहीं, उसमें एक कड़ी बुद्ध और अंगुलिमाल पर केंद्रित थी. अंगुलिमाल ने बुद्ध से प्रभावित हो कर अपना क्रूरकर्म छोड़ दिया. जो अंगुलिमाल कभी अपने गले में अँगुलियों की माला डाल कर रखता था और जिससे लोग थर थर काँपते थे वह बौद्ध भिक्षु बना. पूर्व का भयंकर डाकू और बाद का अहिंसावादी बौद्ध भिक्षु अंगुलिमाल जब गाँव में पहुंचा तो वही लोग जो कभी उससे भयभीत होते थे, उन्हीं लोगों ने उसे निहत्था पाया तो पीट पीट कर मार डाला. उसका आतंक ही उसका बल था. निर्दोष मन से गए अंगुलिमाल को साधु बनते ही प्राण गंवाने पड़े. "भय बिन प्रीति न होत गोसाईं" और भय उसी से होता है जिसमें बल हो. निर्बल से क्या भय होगा. उसका तो शोषण होने की ही सम्भावना अधिक है. हिन्दू धर्म के अधिकतर देवी देवताओं के हाथ में अस्त्र है जिससे उनके सामर्थ्य का अनुमान लगाया जा सकता है. ज्योतिष में भी जितना शनिदेव से लोग भयभीत रहते हैं उतना किसी और ग्रह से नहीं. सम्भवतः इसीलिए व्यक्ति सबल बनने हेतु नाना प्रकार के यत्न करता है. लगा रहता है कि किसी प्रकार अपने गुणों द्वारा प्रभावशाली बन सके. गुणों में स्वाभाविक (जन्म से मिले) गुण श्रेष्ठ हैं परन्तु अपने स्वाभाविक गुणों का हर किसी को पता नहीं होता इसलिए बहुत से लोग गुणवान होते हुए भी सफल नहीं हो पाते. सम्भवतः यह भी एक कारण हो जिसके लिए ज्योतिष शास्त्र की रचना हुई! |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |