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शनिमहात्म्य - राजा विक्रमादित्य और शनिदेव

8/4/2017

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शनिदेव अपने विमान में बैठ कहीं जा रहे थे कि उन्हें राजा विक्रमादित्य की सभा में हो रहे विनोदपूर्ण वचनों ने आकर्षित किया. शनिदेव तत्क्षण विक्रमादित्य के समक्ष प्रकट हुए. सभा में बैठे पंडितों ने पहचान लिया और कहने लगे, "शनिदेव आ गए, शनिदेव आ गए".

विक्रमादित्य उठे और शनिदेव के चरणों में नमन किया परन्तु शनिदेव ने उनका प्रणाम स्वीकार न किया अपितु राजा को कहा, "तुझे बहुत गर्व है न, तो अब मैं तुझ पर आता हूँ". विक्रमादित्य ने बहुत क्षमायाचना करी परन्तु शनिदेव न माने और विक्रमादित्य को चिंतित छोड़कर जहाँ से आये थे वहीं चले गए.

परन्तु विक्रमादित्य ने ऐसा क्या कहा था?
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Image: http://www.hindugodwallpaper.com/images/gods/zoom/812_shani_dev_wallpaper_02.jpg
हुआ यह था कि विक्रमादित्य ने अपनी सभा में बैठे विद्वानों से प्रश्न पुछा कि ग्रहों में श्रेष्ठ ग्रह कौन है. उत्तर में सभी पंडित एक एक ग्रह की प्रशंसा करने लगे. जब शनिदेव की बारी आयी तो एक विद्वान ने कहा,

"सभी ग्रहों में शनिग्रह श्रेष्ठ है. इनकी मूर्ति काली है और यह जाति से तेली है. कालभैरव के उपासक हैं और महाबलशाली हैं. शनिदेव की कृपा जिस पर होती है उसके लिए सभी मार्ग सरल हो जाते हैं परन्तु जिस पर वह कोप करते हैं उसके लिए तो मार्ग में नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित हो जाते हैं. उसका तो संसार ही बिगड़ा जानिए.

महाक्रोधी शनिदेव को युद्ध में कोई पराजय नहीं. शनि दुःख के दाता हैं परन्तु जो भी इनका आदर करता है, पूजन करता है उस पर शनिदेव कृपा करते हैं. उनकी (वक्र) दृष्टि जिस पर पड़ जाये उसका तो फिर क्या बचेगा परन्तु जिस पर कृपा कर दें तो फिर उसे क्या नहीं प्राप्त हो सकता".

पंडित ने आगे कहा, "महाराज शनिदेव के जन्म से सम्बंधित एक प्रसंग सुनिए. जब शनिदेव का जन्म हुआ तो रथारूढ़ पिता पर उनकी दृष्टि पड़ी जिसके फलस्वरूप पिता को तो कुष्ठरोग हो गया, सारथी पंगु हो गया और रथ के अश्व को अंधत्व हुआ. इन तीनों को आरोग्य तभी मिला जब शनिदेव ने दृष्टि फिराई".

विक्रमादित्य को यह प्रसंग बड़ा ही विचित्र लगा. वह ताली बजाते हुए हँसने लगे और कहने लगे, "ऐसा पुत्र किस काम का. जिसने जन्म होते ही अपने पिता को कष्ट दिया ऐसा पुत्र आगे चलकर तो जाने क्या करेगा." जब राजा ने ऐसा कहा तो सभा में भी हास्य विनोद होने लगा. लोग कहने लगे, "यह भी कोई पुत्र हुआ." "कैसा अपवित्र पुत्र है".

इसी विनोद के फलस्वरूप शनिदेव ने विक्रमादित्य को नाना प्रकार के कष्ट दिए. जब शनिदेव ने देखा कि विक्रमादित्य धैर्यपूर्वक सब सहन कर रहे हैं तो उन्होंने अंत में राजा को वरदान दिया कि जो भी नियमित रूप से शनिवार को शनिमहात्म्य (जो कि मुख्यतः विक्रमादित्य और शनिदेव का प्रसंग है) का पठन श्रवण करेगा उसकी रक्षा मैं करूँगा इसमें कोई संदेह नहीं.

ज्योतिष के अनुसार शनि कृष्ण पक्ष में और रात्रि के समय बलवान होता है. रात्रि के तीन भाग किये जाएँ तो रात्रि के तीसरे भाग में शनि बलवान होता है. ऐसे समय शनि सम्बंधित उपासना विशेष फलदायी होती है. 

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    Author - Archit
    लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः
    येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः
     I

    ​ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. 

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