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कालसर्प योग के प्रकार, दोष और पूजा पर विचार 

10/1/2016

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कालसर्प योग क्या है? 
कालसर्प योग तब बनता है जब सारे ग्रह राहु और केतु के मध्य आ जाते हैं. कहा जाता है कि ऐसे जातक को जीवन भर संघर्ष करना पड़ता है. उसके बनते काम बिगड़ जाते हैं और कोई काम आसानी से नहीं होता. 

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कालसर्प योग के प्रकार 
कालसर्प योग बारह प्रकार के बताये जाते हैं और यह राहु केतु की स्थिति के अतिरिक्त और कुछ नहीं. उदहारण के लिए राहु लग्न में और केतु सातवें में हो तो अनंत नामक कालसर्प योग का निर्माण होता है. इस स्थिति में राहु और केतु के जो इन स्थानों में बैठने के परिणाम होंगे वही बताया जाता है. उदहारण के लिए: 

१) अनंत कालसर्प योग: राहु के प्रथम स्थान में और केतु के सप्तम स्थान में होने पर अनंत कालसर्प योग कहलाता है. इस के परिणामस्वरूप जातक को भ्रमित हो जाने की प्रवृत्ति, पत्नी के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या, स्वयं के स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या, वैवाहिक जीवन में संघर्ष आदि समझना चाहिए 

२) कुलिक कालसर्प योग: राहु के द्वितीय स्थान में और केतु के अष्टम स्थान में होने से इस योग का निर्माण होता है. कुलिक कालसर्प योग के परिणामस्वरूप जातक को पारिवारिक मतभेद, ससुराल से न बनना, धन सम्बन्धी समस्याएं, बोलने से बात बिगड़ना आदि होने की संभावना रहती है 

३) वासुकि कालसर्प योग: राहु जब तृतीय में हो और केतु नवम में हो सारे ग्रह बीच में हों, तो वासुकि कालसर्प योग समझना चाहिए. इस योग से पीड़ित व्यक्ति को पिता से मतभेद, छोटे भाई बहिन, पड़ौसी से मतभेद, कान सम्बन्धी कष्ट होना कहा जाता है. 

​४) शंखपाल कालसर्प योग: शंखपाल नामक कालसर्प योग तब बनता है जब राहु और केतु क्रमशः चतुर्थ एवं दशम स्थान में स्थित हों. ऐसी स्थिति में व्यक्ति को माता से कष्ट अथवा माता को कष्ट, पिता से मतभेद, अधिकारी से मतभेद, मानसिक त्रास इत्यादि कहना चाहिए. 

५) पद्म कालसर्प योग: राहु जब पांचवें स्थान में हो और केतु एकादश स्थान में तो पुत्र प्राप्ति में कष्ट, संतान की ओर से कष्ट, अपेक्षित लाभ न होना, बड़े भाई की तरफ से समस्या, संतान होने के बाद कष्टमय जीवन इत्यादि कहा जाता है. 

६) महापद्म कालसर्प योग: राहु के षष्ठ स्थान में और केतु के द्वादश (बारहवें) स्थान में होने पर महापद्म कालसर्प योग बनेगा ऐसा समझना चाहिए. इस योग में जिन व्यक्तियों का जन्म होता है उन्हें आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ सकता है, शत्रुभय, निराशा, राजदंड आदि कहा जाता है.

इसके पश्चात आने वाले जितने भी कालसर्प योग हैं उनमें ऊपर से उल्टा हो जायेगा. अर्थात, अनन्त में राहु प्रथम में था और केतु सप्तम में तो तक्षक कालसर्प योग में केतु प्रथम में और राहु सप्तम में होगा.

​७) तक्षक कालसर्प योग: केतु लग्न में और राहु सप्तम स्थान में होने पर तक्षक नामक कालसर्प योग बनता है. इस योग में आने वाले व्यक्ति को भी वैवाहिक जीवन में संकटों का सामना करना पड़ता है, विरक्ति का भाव होने से सांसारिक समस्याएं, उत्तेजित हो जाना, अंतर्जातीय विवाह आदि कहना चाहिए. 

८) कर्कोटक कालसर्प योग: केतु के दूसरे स्थान में और राहु के अष्टम स्थान में होने पर कर्कोटक नामक कालसर्प योग कहा जाता है. इस योग में पैदा होने वाले व्यक्ति को संघर्ष, कष्ट, अड़चनें, पारिवारिक जीवन में त्रास, आर्थिक संकट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है.     

९) शंखचूड़ कालसर्प योग: राहु नवम में एवं केतु तृतीय में हो तो शंखचूड़ कालसर्प योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना, जो काम करे उसमें अड़चन, धर्म के प्रति एक रहस्यपूर्ण विचारधारा भी कभी कभी देखने में आती है.  

१०) घातक कालसर्प योग: राहु दशम में और केतु चतुर्थ में होने पर. ऐसा व्यक्ति कामधंधे में निराश होता है. अपने अधिकारी से परेशान एवं घर से दूर होना चाहता है. जितना संघर्ष करता है उतनी यश प्राप्ति नहीं होता. महत्वाकांक्षाएं अधिक और फलप्राप्ति कम होना भी परेशानी का कारण बनता है. 

११) विषधर कालसर्प योग: राहु एकादश में हो और केतु पंचम में हो तो विषधर कालसर्प योग बनेगा ऐसा कहते हैं. कुछ ज्योतिषी कहते हैं कि ऐसे योग से प्रभावित यदि कोई स्त्री हो तो गर्भपात की संभावना होती है. लाभ न होना, एक स्थान पर न टिक सकना आदि समस्या होती है. 

१२) शेषनाग कालसर्प योग: राहु बारहवें स्थान में स्थित हो और केतु षष्ठ स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प योग कहा जाता है. इस योग के फलस्वरूप जातक को कारावास, ऋण (क़र्ज़), गुप्त शत्रु सम्बन्धी समस्याएं, आदि का सामना करना पड़ सकता है. 

ध्यान दें: ऊपर बार बार यह नहीं लिखा गया कि राहु केतु के बीच सभी ग्रह हों क्योंकि कालसर्प योग की परिभाषा ही वही है और यह लेख कालसर्प योग पर केंद्रित है.  

क्या कालसर्प योग एक ढकोसला या ढोंग है?
कालसर्प योग बस एक योग है जो किसी ज्योतिषी ने बनाया है. यहां तक कोई बुराई नहीं. किन्तु किसी भी योग को जब अधूरा पढ़ा जाता है तभी गड़बड़ होती है और समाज में भ्रांतिया फैल जाती हैं. कालसर्प योग के बारे में यह कहना कि राहु केतु के बीच सारे ग्रह आ गए तो यह योग हो गया, ऐसे में क्या राहु केतु की राशि, स्थान, दृष्टी आदि अन्य योगों का कोई महत्व नहीं होगा? 

होमियोपैथी की एक पुस्तक में मैंने पढ़ा था कि कुछ चिकित्सक (डॉक्टर) लोग जुकाम का सुनते ही aconite (एक दवाई) या बेलाडोना (एक अन्य दवाई) दे देते हैं जबकि होमियोपैथी का तो मूलभूत सिद्धांत ही लक्षणों के अनुसार दवाई देना है. इसीलिए कई बार दवाई का असर नहीं होता और फिर होमियोपैथी को बुराई मिलती है. यही ज्योतिष में भी हो रहा है. 

कालसर्प योग सुना और लोग पूजा कराने जाने लगते हैं और पंडितों की मौज हो जाती है. ज्योतिषीगण भी कुछ ज्ञान के अभाव में तो कुछ पंडित से सांठगांठ होने के कारण पूजा का उपाय सुझाते हैं. बचे हुए कुछ ज्योतिषी अपने पास आये जातक के दबाव में या पीछा छुड़ाने को ऐसा कह देते हैं. कुछ ज्योतिषी ऐसे भी हैं जो इन सब को भली भाँती जांच परख कर ही कोई निर्णय लेते हैं. 

आधे अधूरे ज्ञान के चलते ही मांगलिक दोष, गुण मिलान, कुंडली मिलान, राजयोग आदि का बड़ा ही दुष्प्रचार हुआ है. उदहारण के लिए जातक पारिजात का यह श्लोक देखिये: 

धनुमीनतुलामेषौमृगकुम्भोदये शनौ, चार्वङ्गो नृपतिविद्वान् पुरग्रामाग्रणी भवेत् 

इसका अर्थ है, कि यदि शनि धनु, मीन, तुला, मेष, मकर अथवा कुम्भ राशि में होकर लग्न में हो, तो राजा, विद्वान, अपने नगर/ग्राम में अग्रणी होता है. 

यहां जातकपारिजातकार ने बारह में से छः राशियाँ गिना दीं. इसका मतलब हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग होंगे. क्या हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं? स्वयं ही विचार कीजिये. 

एक अन्य उदहारण देखिये: यदि मंगल अपनी स्वराशि में या उच्चराशि में केंद्र में हो तो रूचक योग होता है. ऐसे योग में जन्मने वाला बालक नृपति, उत्साह-शौर्यवान, विजयी होने वाला, और धनवान होता है. 

क्या ऐसा सदैव होता है? ध्यान रहे, चार में से तीन केंद्र स्थानों में मंगल की स्थिति जातक को मंगली का नाम दे देती है.   

ज्योतिष ऐसे नहीं पढ़ा जाता. किसी भी योग के साथ अन्य योगायोग का भी विचार कर के फिर कोई निर्णय लिया जाता है. यही कारण है कि हर कोई ज्योतिष को समझ नहीं पाता. जब हम इस एक योग को ही सब कुछ मान लेते हैं तो ज्योतिष विद्या के साथ बड़ा ही अन्याय हो जाता है. 

कालसर्प योग में विश्वास रखने वालों से मेरा यही प्रश्न है कि क्या राहु-केतु यदि लग्न-सप्तम में बैठे हों, अथवा दूसरे-आठवे घर में बैठे हों और कालसर्प योग न हो तो क्या आवश्यक है कि वो शुभ फल ही करेंगे? राहु केतु यदि पत्रिका में बिना कालसर्प के बैठे हों तो क्या व्यक्ति को परेशानी नहीं होती? ​
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    Author - Archit
    लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः
    येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः
     I

    ​ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. 

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