लगभग २०-२२ वर्ष पहले की बात है मेरे पिताजी हमारे एक परिचित का हाथ देख रहे थे. माताजी और मैं भी वहाँ उपस्थित थे. माताजी उन दिनों ज्योतिष सीख रही थीं. जब पिताजी ने उस व्यक्ति के हाथ की रेखाओं के विषय में माताजी का विचार पूछा तो माताजी ने कहा, "इनका गिरजाघर से कुछ सम्बन्ध लग रहा है और उपाय भी ऐसा ही आ रहा है जो गिरजाघर में किया जाये." वह व्यक्ति नाम से हिन्दू थे और हरिद्वार में ईसाई उन दिनों कम ही दीखते थे अतः हमारे लिए यह आश्चर्य का विषय था. वह व्यक्ति बोले, "आपने ठीक ही कहा. कुछ वर्ष हुए मैं ईसाई हो गया हूँ". उसके बाद तो वह हमारे घर ज्योतिष के लिए कई लोगों को ले कर आये. एक व्यक्ति जो इस्लाम धर्म से सम्बन्ध रखते थे हमारे घर आये. जब उन्होंने उपाय पूछा तो माताजी ने काली माता से सम्बन्धित उपाय कहा. तब उन्होंने बताया कि यद्यपि वे मुसलमान हैं परन्तु काली माता में उनकी बड़ी श्रद्धा है. कई सिखजन जो पगड़ी नहीं रखते थे जब उनके उपाय गुरूद्वारे से जुड़े आये तो उन लोगों ने बताया कि वह सिख हैं. ऐसा तो अनेकों बार हुआ कि सिख धर्म से सम्बन्धित लोगों को मेरी माताजी ने गुरूद्वारे और गुरु ग्रन्थ साहिब से जुड़े उपाय बताये. सिखधर्म, इस्लाम अथवा किसी अन्य धर्म का मेरी माताजी को कोई ज्ञान नहीं था फिर भी उनके धर्म से जुड़ा समाधान बता देती थीं और लोगों का भला होता था. क्या यह सब केवल ज्योतिष था? मेरे पिताजी उनकी इस प्रतिभा को बहुत पहले ही समझ गए थे अतः उन्होंने मेरी माताजी को ईश्वर की साधना करने की ओर उन्मुख किया और स्वयं भी कठिन साधना में लीन हुए. एक बार सिद्ध होते ही फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. सहारनपुर, मुज़फ्फरनगर, लुधिआना, मेरठ, दिल्ली, आगरा, बरेली आदि अनेक नगरों से लोग हमारे यहाँ आने लगे. मैंने कभी उन्हें पुस्तकें पढ़ते नहीं देखा परन्तु जो उपाय वह बताती थीं बिलकुल सटीक होते थे. व्यावहारिक ज्योतिष में दो बातों की अपेक्षा की जाती है - १) फलादेश २) उपाय. फलादेश करना तो फिर भी हो सकता है परन्तु सबसे कठिन चुनौती होती है उपाय बताना. एक चाचीजी ने एक बार मुझसे पूछा था कि तुम्हारे माता पिता उपाय कहाँ से देखकर बताते हैं. मैंने कहा, "गृहस्थ होने के बाद भी उनकी साधना इतनी है कि उन्हें कहीं देख कर उपाय नहीं बताने पड़ते. आप भी चार से पाँच घण्टे प्रतिदिन ईश्वर के सान्निध्य में व्यतीत करो तो आपको भी उपलब्धि हो जाएगी." लाल किताब से रटकर अथवा इधर उधर से देखकर उपाय बताना तो कोई भी कर सकता है. बात यह है कि आपके बताये उपाय से पूछने वाले का भला हो. कोई अपने पर विश्वास कर रहा है तो उसके विश्वास को ठेस न पहुँचे. अपनी भावना यही हो कि भलाई करनी है. दक्षिणा तो पारिश्रमिक है और इसलिए भी कि हँसी के लिए या अति में प्रश्न पूछने वालों पर नियंत्रण रखा जा सके. सूक्ष्म अध्ययन से फलादेश सुधर तो जाता है परन्तु उसमें समय बहुत लगता है. गणित की शुद्धता का भी ध्यान रखना पड़ता है. मेरा यह पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर हम पर प्रसन्न हो तो हमारे वचन का मान रखता है और उपाय काम करता है. अतः ईश्वर को प्रसन्न किये बिना ज्योतिष में सफलता मिलना मुझे तो कठिन ही लगता है. मेरे लिए तो यात्रा अभी आरम्भ हुई है. अपने माता पिता जैसा होने में तो कदाचित् यह जीवन कम पड़ जाये. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |