मैं कौन हूँ? कौन हूँ मैं? क्या कर्म हूँ? क्या भाग्य हूँ? क्या मन हूँ? क्या बुद्धि हूँ? क्या काम (वासना) हूँ? जन्मपत्रिका में देखें तो मैं इनमें से कुछ भी नहीं हूँ. जन्मकुण्डली में "मैं" अर्थात् "अहम्" का विचार लग्न (प्रथम स्थान) से है अतः स्पष्ट है कि मन (चतुर्थ स्थान), कर्म (दशम स्थान), बुद्धि (पञ्चम स्थान), भाग्य (नवम स्थान) इत्यादि "मैं" नहीं हूँ. मैं इन सबसे जुड़ा हूँ फिर भी इन सबसे अलग हूँ. जब तक जुड़ा हूँ तब तक देह हूँ, और जिस दिन अलग हो गया तो आत्मा हो गया. ग्रहों से ऊपर उठ जाना वही है. मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाऽहं, चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहं द्वारा शंकराचार्यजी ने इसी ओर संकेत किया है. न मैं मन हूँ, न बुद्धि, न चित्त, न अहंकार. मैं शिव हूँ. शिव अर्थात् वह चिदानन्दरूप परमात्मा. ज्योतिष में लग्न का कारक सूर्य है. सूर्य ब्रह्माण्ड की आत्मा है और ज्योतिष में इसे सात्विक ग्रह माना गया है. जगत् को प्रकाशित करना इसका सहज स्वभाव है. परन्तु अपने को देह समझने वालों के लिए सूर्य अहम् है. प्रतिष्ठा, समृद्धि, राज्य, गौरव, यश आदि बातों का कारक है. जो आत्मा ही हो गए उनको इन सब बातों से क्या. जब मैं ज्योतिष सीखता था (अभी भी सीख ही रहा हूँ) तब मेरे गुरु मुझसे कहा करते थे कि प्रश्न कोई भी हो, लग्न का अवश्य विचार करो. प्रायः लोग सूर्य की और लग्न (प्रथम भाव) की उपेक्षा सी कर देते हैं. वह इसीलिए क्योंकि वह इस बात को समझ नहीं पाते कि "मैं कौन हूँ" इस बात का क्या महत्व है. सांसारिक दृष्टि से भी और आध्यात्मिक दृष्टि से भी. संसार में मैं किस ओर झुका हूँ. कुटुम्ब, विद्या, पुत्रादि मिल जाये तो क्या मैं संतुष्ट हो जाऊँगा? क्या घर मिल जाने मात्र से मुझे सुख हो जायेगा? या सत्य कुछ और है? इसलिए प्रायः लोग प्रश्नों के उत्तर पाकर भी अनुत्तरित रह जाते हैं. अहम् भी सूर्य है, आत्मा भी सूर्य है. इसीलिए बहुत सावधानी से परमार्थ के पथ पर आगे बढ़ने को कहते हैं. अहम् कभी भी आ धमकता है. पता भी नहीं चलता. बात बहुत कठिन है इसीलिए कृष्ण कहते हैं कि तुम चक्कर में मत पड़ो. मात्र कर्म करो. अच्छा या बुरा वह सब परमात्मा पर छोड़ो. अन्यथा उलझन होगी. बुरा भी वही और भला भी वही. सत्य भी वही और असत्य भी वही. सत्य और असत्य के ऊपर परमसत्य केवल वही. तत्सत्. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |