जब हम पतङ्ग खरीदने जाते थे तो एक जाँच का विषय यह भी होता था कि बीच वाले तिल्ले से ऊपर वाला तिल्ला दोनों ओर बराबर है या नहीं. कभी ऐसा भी होता था कि एक कोने से पतङ्ग थोड़ी फट जाती थी और चेप्पी (चिपकाने वाली पट्टी) नहीं होती थी तो दोनों ओर से तिल्ले बराबर तोड़कर फिर उड़ा देते थे. दोनों ओर से बराबर नहीं होने पर उड़ाना कठिन होता था. इसी प्रकार जीवन में आने वाली समस्याओं में भी दोनों (या सारे) पक्ष जान लेना आवश्यक होता है. एक ही पक्ष पर ध्यान दिया तो जीवन की पतङ्ग उड़ाना कठिन हो जाता है. बीते दिनों एक पत्रिका देखने को मिली. प्रश्न पिता ने किया था, "क्या इस वैवाहिक सम्बन्ध का कोई भविष्य है?". उन्होंने बताया कि लड़का तो लड़ झगड़ कर अपने घर आ गया है. लड़की (बहू) अभी उसी घर में है जिस शहर में लड़का नौकरी करता है. लड़के ने तय किया है अब उस लड़की से बात नहीं करेगा. मैंने पूछा, "आप क्या चाहते हैं?" उन्होंने कहा, "सही कहूँ तो मैं तो अब तंग आ चुका हूँ. अपने लड़के को ऐसे चिन्तित होते हुए मुझसे देखा नहीं जाता. क्या पत्रिका में अलग होने के कोई योग हैं". मैंने पत्रिका देखी तो पाया - लग्नेश व्यय स्थान में राहु के साथ, लग्न - लग्नेश पर कोई शुभ प्रभाव नहीं, सप्तम पर मंगल की दृष्टि, षष्ठ में केतु, अष्टम में शनि से युक्त शुक्र (द्वितीयेश, सप्तमेश और कारक) आदि योग थे. मकर के सूर्य पर शनि की दृष्टि और गुरु भी कोई विशेष शुभ स्थिति में नहीं था. चन्द्रमा कर्क में चतुर्थ में परन्तु किसी शुभ दृष्टि से रहित. बहू की पत्रिका देखी और फिर यह पत्रिका देखी तो और भी स्पष्ट हो गया कि लड़का ही गड़बड़ कर रहा है और घर के लोग अपने बेटे की बातों में बह रहे हैं. उचित अनुचित नहीं सोच पा रहे. साथ ही यह भी पत्रिका से पता चला कि वो चाहते नहीं कि सम्बन्ध टूटें परन्तु पुत्र मोह में उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा. मैंने पूछा, "आपने कभी अपनी बहुरानी का पक्ष जानने का प्रयास किया? क्या कभी उसके घरवालों से इस सम्बन्ध में बात की?" वह थोड़ा मुँह बनाकर बोले, "अजी उनसे क्यों बात करें. हमारा लड़का क्या झूठ बोल रहा है. उस बेचारे की बातें सुनकर इतनी पीड़ा होती है कि बहू या उसके माँ बाप से बात करने की इच्छा ही नहीं होती. हम तो जो हमारा लड़का कहता है उस पर विश्वास कर लेते हैं." बाद में उन्होंने बताया कि सम्बन्धियों में भी सभी हमसे सहमत हैं कि लड़की और उसका परिवार अच्छा नहीं है. मैंने उनसे पूछा, "सम्बन्धी इस निष्कर्ष पर कैसे पहुँचे?" वे बोले, "हमने बताया जी". आगे कुछ पूछना व्यर्थ था. मैंने उन्हें कहा कि बहू से बात करें. पति पत्नी अलग हो जायेंगे ऐसा तो नहीं लगता. लगे तो बहू के घर के लोगों के सामने बैठा कर बात करें. पत्रिका के अनुसार भूल पति से हो रही है और अपयश पत्नी को मिल रहा है. उन्होंने इस बात को अनसुना कर के पूछा, "कोई मंत्र हो तो बताओ जी. या कोई टोटका हो." माता पिता होते तो बहुत पूजनीय हैं परन्तु भावनाओं में वह भी बह ही जाते हैं. लड़की के माता पिता समझते हैं हमारी लड़की भली है और लड़के के माता पिता को लगता है कि उनका लड़का साक्षात् श्रीरामचन्द्र का ही रूप है. सोचना चाहिए कि जो पीठ पीछे अपनी पत्नी की निन्दा करता फिरता हो वह क्या श्रीराम का रूप होगा. जब तक घर के बड़े निष्पक्ष हो कर विषय पर विचार नहीं करेंगे तब तक समस्या का समाधान होना कठिन ही होगा. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |