मुझे ज्योतिष सिखाने वाले गुरूजी पंचम स्थान के बारे में बताते हुए कहा करते थे कि यह पूर्वजन्म का स्थान है और बड़ी रोचक बात है कि संतान का विचार भी इसी स्थान से है. जैसी संतान होगी व्यक्ति का जीवन फिर आगे उसी पर निर्भर हो जायेगा. वह कहते थे कि अच्छी संतान होना पूर्वजन्म में किये गए पुण्यों का ही फल है. कई लोग है जिन्हें संतान तो है परन्तु कोई न कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी अथवा कोई और समस्या लगी ही रहती है. कितना भी उपचार या उपाय करा लें कोई राहत नहीं मिलती. वृद्धि चाहिए परन्तु क्षय होता है. कुछ विचित्र कारणों से होने वाली संतान सम्बन्धी समस्याओं को ले कर ही यह लेख केंद्रित है जिनका ज्योतिष के अध्ययन से ज्ञान होता है. देवता का श्राप पंचम स्थान, पंचम स्थान का स्वामी और बृहस्पति यदि पाप ग्रह से दृष्ट हो तो ईश्वरीय प्रकोप से, या कहें कि दैवीय श्राप से संतान को कष्ट है. संस्कृत में शब्द आया है "सुतक्षय". सुत का अर्थ है पुत्र और क्षय होने का अर्थ है धीरे धीरे समाप्त होना अथवा कम होना. यद्यपि सुत का अर्थ पुत्र है परन्तु पुत्री के लिए भी जन्मपत्रिका में पंचम स्थान ही है अतः पुत्र और पुत्री दोनों पर ही यह लागू होना चाहिए. पंचम स्थान पूजा का भी स्थान है और बृहस्पति देवताओं के भी द्योतक है. सम्भवतः इसीलिए इस योग को दैवीय श्राप की श्रेणी में रखा गया. किसी की पत्रिका में ऐसा योग हो और यदि वह देवता की उपासना करे तो तो संभव है कि इस श्राप से मुक्ति मिल जाए. कौन से देवता की उपासना? यह पत्रिका देखने पर ही पता चलेगा अतः किसी योग्य ज्योतिषी से ही पूछना चाहिए. शत्रु का श्राप यदि पंचम स्थान का स्वामी मंगल के साथ हो और उसको छठे भाव का स्वामी देखे तो शत्रु के श्राप से सुत को कष्ट. छठा स्थान शत्रु स्थान है और मंगल छठे स्थान का कारक. एक बात और यहां उठती है. श्राप का अर्थ क्या है? प्राचीन काल में लोग इतने चरित्रवान थे कि उनके चरित्र से ही उनका आत्मबल बहुत अधिक था. उनका पूजा पाठ बहुत अधिक था अतः उनकी कही बात व्यर्थ नहीं होती थी. उनका आशीर्वाद और श्राप दोनों लगते थे. आज के समाज में चरित्रवान लोग सुलभ नहीं है. शत्रु भी अब आमने सामने वाले नहीं रहे. समय कुछ ऐसा है कि आपके पड़ोस में बैठने वाला ही आपका शत्रु हो सकता है और आप यह जानते हुए भी उस से दूर नहीं हो सकते. अतः मेरे विचार से श्राप का अर्थ यहाँ पर कोसना अथवा लगातार किसी के बारे में बुरा सोचना लिया जाना चाहिए. पिता का श्राप नवम स्थान यदि पाप ग्रहों से युक्त हो, पंचम स्थान का स्वामी यदि शनि से युक्त हो और १,५,९ में से किसी स्थान में मांदि हो तो पिता की ओर से श्राप होता है. यहाँ प्रश्न उठेगा कि पिता के लिए नवम भाव क्यों? ज्योतिष के बहुत से ग्रन्थ दक्षिण भारत में लिखे गए हैं और वहाँ पर पिता का विचार नवम भाव से किया जाता है. भारत के बाकी भागों में साधारणतः दशम भाव से पिता का विचार करना कहा गया है. जिन दिनों मैं जन्मपत्रिका देखा करता था एक व्यक्ति मेरे पास आये. उनका प्रश्न व्यापर से सम्बंधित था. उनका कहना था कि कोई भी काम करें चलता ही नहीं. यश नहीं मिलता और धन भी जाता रहता है. उनकी पत्रिका से ऐसा पता चल रहा था कि जाने अनजाने उनके कर्मों से उनके पिता की भावनाएँ आहत होती हैं. मैंने उन्हें सुझाया कि अपने पिता की सेवा करें सब ठीक हो जायेगा. उन्होंने कहा, "इस एक काम को छोड़ कर मैं सब कर सकता हूँ. पिता को संतुष्ट कर पाना मुझसे न होगा". आज वो अपने पिता से अलग रहते हैं. मंदिरों में जाना अथवा भगवान की पूजा करना अच्छी बात है परन्तु अपने पिता का अपमान कर भगवान की पूजा करना कितना लाभदायक होगा आप स्वयं ही विचार कीजिये. सूर्य पिता का भी कारक है और यश का भी. पिता का सम्मान करेंगे यश अपने आप मिलेगा. माता का श्राप यदि चतुर्थ स्थान में पापग्रह हों और पंचमेश शनि के साथ आठवें या बारहवें भाव में हों तो माता की ओर से श्राप होने से संतान का क्षय. कोई कह सकता है माता पिता कभी अपनी ही संतान को श्राप क्यों देंगे परन्तु ऐसा पूर्णतया सत्य नहीं है. यदि संतान के कर्म ख़राब होंगे तो माता पिता को मानसिक क्लेश होगा और उनके मन से अपने पुत्र के लिए अच्छी भावनाएं नहीं निकलेंगी. कई बार देखने में आता है कि बेटियां और बेटे अपने माता पिता से खूब विवाद करते हैं. कुछ परिवारों में तो पिता पुत्र में मारपीट भी होती है. कोई तो बात होगी ही जो वृद्ध लोगों की सुरक्षा के लिए विश्वभर में कार्यक्रम चल रहे हैं. इस प्रकार के कष्ट से बचने का एकमात्र उपाय माता पिता की सेवा करना ही है. सर्पदोष यदि पंचम और पंचमेश निर्बल हों और राहु केतु से युक्त हों तो सर्पदोष के कारण संतान को कष्ट होता है. सर्पदोष निवारण हेतु प्रायः लोग सर्पसूक्त, मनसादेवी नागस्तोत्र, नवनागस्तोत्र आदि का पाठ किया करते हैं. वैसे महाभारत के आदिपर्व में भी एक कथा में कुछ मंत्र दिए हैं जो सर्पभय से रक्षा करते हैं. यह मंत्र आस्तीक को स्वयं सर्पों ने उस पर प्रसन्न हों कर दिए थे. और अंत में संतान के बारे में विचार करने के लिए जन्मपत्रिका में मुख्यतः लग्न से पंचम स्थान, पंचम स्थान का स्वामी और गुरु (बृहस्पति) का विचार किया जाता है. अन्य भाव/भावेश का भी विचार किया जा सकता है. ज्योतिष एक विस्तृत विषय है और गहन अध्ययन के बाद ही कुछ निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है अतः कोई भी उपाय करने से पहले अपने ज्योतिषी से संपर्क करें. |
Archives
October 2020
Categories
All
Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |