यस्मिन् चान्द्रे न संक्रान्तिः सोऽधिमासो निगद्यते। तत्र मंगलकार्याणि नैव कुर्यात् कदाचन॥ जिसमें (चान्द्रमास में) संक्रान्ति न हो वह अधिमास या अधिकमास कहलाता है. उसमें मंगलकार्य (शुभकार्य) वर्जित कहे जाते हैं. जैसे विवाह, मुण्डन, गृह प्रवेश (नए घर में), वाहन खरीदना, आदि. चान्द्रमास क्या होता है? शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के समय को चान्द्रमास कहते हैं. संक्रान्ति न हो का क्या अर्थ हुआ? साधारणतः सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण संक्रान्ति कहलाता है. जब एक संक्रान्ति चान्द्रमास के पहले हो जाये और दूसरी चान्द्रमास पूरा होने के बाद हो तो वह अधिकमास कहलायेगा. भगवान् विष्णु को इस मास का अधिपति माना जाता है अतः इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं. इस मास में भगवान् नारायण की प्रसन्नता के लिए व्रत धारण करने का महान् पुण्य कहा गया है. व्रत कहते हैं संकल्प को या प्रतिज्ञा को. दूसरे शब्दों में कहा जाये तो नियम ग्रहण करना. एक समय अथवा दोनों समय भोजन त्याग का नियम ग्रहण करा तो वह व्रत का प्रकार है. भक्ति परमानन्ददायिनी है. भक्ति किसी उत्सव से कम नहीं. अतः पुराण में इस मास को उत्सव करने का निर्देश है. है. सब जन मिलकर पूजा आरती आदि करें तो आनन्द कई गुना बढ़ जाता हैं. इस मास में विभिन्न स्तोत्र, दान, जपादि कर्मों द्वारा भक्तगण ईश्वर को स्मरण करते हैं तथा भगवान् को उत्तम पदार्थ नैवेद्य में अर्पण करते है. जिस प्रकार लक्ष्मीनारायण की पूजा का महत्त्व है वैसे ही गौरीशंकर की पूजा का भी पुरुषोत्तम मास (अधिकमास) में पुण्य हैं. भगवान् शिव की आरती करते हुए कहते भी है: ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका॥ मेरी समझ में तो यह आता है कि तीन वर्षों में एक बार आने वाला यह मास परमात्मा की भक्ति, प्रसन्नता एवं अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए है न कि अपने सांसारिक सुख की प्रार्थना के लिए. विष्णु कहें या शिव, इस मास में परमात्मा को प्रसन्न करना ही भक्तों का ध्येय होना चाहिए. |
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November 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |