आगे बढ़ना हो तो सपने देखो. बहुत आगे बढ़ना हो तो बड़े सपने देखो. अपने सपनों को आँखों से ओझल न होने दो. उन्हें सच करने का प्रयास करो. बहुत से लोग इस प्रकार की बातें करते मिल जाते हैं. देखा जाये तो बड़ी बड़ी व्यापारी संस्थायें और महान् राजनैतिक दल भी तो लोगों को सपने बेच कर ही तो सफल होते हैं. भविष्य का हो तो सपना और भूत का हो तो स्मृति (यादें). शब्द अलग हैं पर बात एक ही है और दोनों ही अच्छे में बिक जाते हैं. द्वादश स्थान जन्मकुण्डली में अन्तिम स्थान है और सपनों का विचार इसी स्थान से है. यही संकेत है. दिनभर कर्म करने के पश्चात् जो अन्तिम अवस्था हो वह स्वप्न की हो. शयन का विचार इस स्थान से है. सपने देखना सोते हुए ही अच्छा. जागते हुए तोव्यक्ति जो घट रहा है उसके प्रति सचेत रहे न कि सपने देखता बैठे. कर्म करे - शेखचिल्ली न बने. सपने देखने की अपेक्षा आज में जिए. सपने सच करने के लिए व्यक्ति ऋण लेता है. अब तो उधारी पत्र (क्रेडिट कार्ड) भी आ गए हैं जो व्यक्ति को सुन्दर सुन्दर स्वप्न दिखाते हैं. जिसका द्वादश स्थान बली हो वह व्यर्थ ऋण लेने के प्रपञ्चों में नहीं पड़ता और यदि पड़ता भी है तो समझदारी से चुका देता है. अशुभ द्वादश वाला व्यक्ति भविष्य के सपने देखते हुए ऋण लेता है और फिर लोगों से मुँह छुपाता फिरता है. ऋण के बोझ से घबराये कई लोगों को तो आत्महत्या करते भी देखा गया है. जो सपनों से आगे बढ़ जाता है वह मोक्ष को प्राप्त होता है. मोक्ष वह स्थिति है जहाँ कोई मुक्त हो जाये. लोग प्रायः इससे जीवन मरण के चक्र से मुक्त होने का अर्थ लेते हैं परन्तु जीवन रहते भी मोक्ष प्राप्त हो सकता है. जो सुख दुःख से ऊपर उठ जाये सही अर्थों में वही मुक्त है. ऐसा कब होगा? जब इच्छाओं से ऊपर उठ कर व्यक्ति केवल कर्म करे. तो सपने देखने का कार्य अशुभ द्वादश वाला व्यक्ति पहले ही करने लगता है और आपको पता ही होगा कि द्वादश स्थान से चमक-दमक का भी विचार होता है. जागते हुए देखे जाने वाले सपने अर्थात् कल्पना और कल्पना में तो सब सुन्दर दीखता है परन्तु वास्तविकता सदा वैसी नहीं होती. कभी कभी तो वास्तविकता बड़ी भयानक होती है. चमक-दमक के चक्कर में कभी कभी अपराध भी होते हैं और व्यक्ति को कारावास जाना पड़ता है. कारावास का विचार भी द्वादश स्थान से है. इस प्रकार सपनों और द्वादश स्थान के विषय में और भी विचार किया जा सकता है. कहने का भाव यह है कि सपने देखना अर्थात् वर्तमान से दूर होना और वर्तमान से दूर हुए तो जीवन तो जिया ही नहीं. विभिन्न ग्रहों के द्वादश स्थान में फलकेतु को द्वादश स्थान में अच्छा समझते हैं. केतु मोक्षदाता भी माना गया है. वैरागी है. अच्छे कामों में व्यय करता है तथा दान-धर्म करने वाला होता है. अच्छे फल तभी समझने चाहियें जब शुभ प्रभाव में हो. अशुभ हो तो दुराचारी, व्यर्थ वाद-विवाद करने वाला, व्यर्थ कामों में धन को लगाने वाला, पैतृक संपत्ति का व्यय करने वाला आदि देखने को मिलता है. द्वादश स्थान विलास का स्थान है और शुक्र को विलास प्रिय है. हो सकता है इसीलिए ऐसे जातक व्यय भी बहुत करते हैं. यदि कोई अशुभ प्रभाव न हो तो शुक्र इस स्थान में व्यक्ति से शुभ कर्म में व्यय करवाता है. किसी की सहायता करने में शुक्र कभी पीछे नहीं हटता. अशुभ प्रभाव हुआ तो परस्त्री के कारण क्लेश देखने को मिल सकता है. विलासिता और व्यभिचार के कारण होने वाली समस्यायें और रोग भी देखने को मिलते हैं. सूर्य राजा है. शुभ स्थिति में सूर्य इस स्थान में अच्छे फल देता देखा गया है. व्यक्ति कर्मठ और साहसी होता है. स्वाभिमान सूर्य का सहज गुण है परन्तु अशुभ हो तो अभिमान देता है. बारहवें स्थान में सूर्य शुभ स्थिति में न हुआ तो बिना अच्छे बुरे का विचार किये दान कर देता है. नींद ऐसे व्यक्ति को कम ही आती है. ऊँची ऊँची उसकी इच्छायें होंगी जो पूरी न होने के कारण क्रोध करेगा. अनुचित कर्मों में साहस दिखाने के कारण हो सकता है कारावास भी जाये. चन्द्रमा मन का कारक है और बारहवाँ व्यय का स्थान है. प्रसन्नचित्त चन्द्रमा का द्वादश (व्यय) स्थान में होने से चित्त की प्रसन्नता जाती रहती है. इस कारण इसके अनुचित कार्यों में पड़ने की संभावना बढ़ जाती है परन्तु वहाँ भी इसे सफलता नहीं मिलती. चन्द्रमा स्वभाव से चञ्चल है. इस पर किसी शुभ और बलवान ग्रह का प्रभाव होना बहुत आवश्यक है अन्यथा मन बहुत भटकता है. मंगल बारहवें स्थान में होने से व्यक्ति अपनी शक्ति को व्यर्थ कामों में व्यय करता है. ऐसे व्यक्ति झूठे आरोप में फँसते देखे गए हैं. अशुभ प्रभाव हो तो कारावास भी जाते हैं. परिवार के लोगों को इनकी ओर से चिन्ता ही अधिक रहती है. धन इनके पास टिकता नहीं. बहुत घूमना फिरना चाहते हैं. विदेश जाना इनके प्रिय सपनों में से एक होता है. मंगल पर शुभ प्रभाव हुआ तो उपरिलिखित फलों में न्यूनता आ जाती है. द्वादश स्थान में राहु को अच्छा नहीं समझा जाता. ऐसा व्यक्ति ऋण लेता है और इसे दुष्ट लोगों का संग मिलता है. प्रपञ्च करना (शेखी बघारना) इसे अच्छा लगता है. शुभ प्रभाव में हो तो परोपकार भी करता है. अशुभ हो तो छल करने में संकोच नहीं करता. द्वादश के गुरु के विषय में विद्वानों ने अधिकांश अशुभ ही विचार प्रस्तुत किये हैं. मेरे इस पर क्या विचार हैं इसके लिए निम्नलिखित लेख का अवलोकन करें: द्वादश (१२वें) भाव में बृहस्पति की स्थिति द्वादश में स्थित शनि का सीधा प्रभाव द्वितीय, षष्ठ तथा नवम पर पड़ता है. यदि अशुभ हुआ तो व्यक्ति कायर होता है. ऐसा व्यक्ति दूर की नहीं सोचता और धन से हीन होता है. इसे अच्छे लोगों का संग नहीं मिलता. इसे आलस करना तथा बातें बनाना प्रिय होता है. शुभ प्रभावित शनि व्यक्ति को बल से युक्त करता है, शुभ कामों में धन खर्च कराता है तथा अपने बन्धुओं से प्रेम करना सिखाता है. द्वादश में बलवान शनि वाले लोगों को सपने कम ही आते हैं. द्वादश में बुध के होने से व्यक्ति में द्वेष करने की प्रवृत्ति आ जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यदि बुध पर शुभ प्रभाव न हो तो वह इस स्थान में जातक को विद्वत्ता के गुण नहीं दे पाता. मूर्ख ही दूसरों से द्वेष किया करते हैं. वह अपनों को छोड़ कर पराये के विचार को या व्यक्ति को समर्थन देता है. शुभ होने पर व्यक्ति बुद्धिमान होता है तथा उसका उठना बैठना भी विद्वानों में होता है. ग्रहों पर विचार करते समय राशि, स्थान, दृष्टि, युति आदि का भी विचार कर लेना चाहिए. |
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November 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |