कभी आपने पाया होगा कि जैसी बातें सुनो वैसा ही मन होने लगता है. शान्त वाणी सुनो अथवा ईश्वर के भजन सुनो तो मन शान्ति पाता है. हँसी भरे वातावरण में मन को अच्छा लगता है वहीं किसी के क्लेश सुनो, किसी के रोते हुए स्वर को सुनो (फिर वह चाहे पशु ही क्यों न हो) तो मन उद्विग्न होने लगता है. कदाचित् कुछ बोलने से मन इतना प्रभावित नहीं होता जितना सुनने से होता है. मैंने सुना है पुराने राजा महाराजा अपने साथ युद्ध में कवियों को ले जाते थे जो युद्धभूमि में सेना का मनोबल बढ़ाने का काम किया करते थे. सुनने का हमारे जीवन में बोलने से अधिक महत्त्व है तभी तो आपने मन्त्रों में भी सुना होगा "ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः". ईश्वर से प्रार्थना करी जाती है कि हम भला अथवा शुभ सुनें. सुनने के लिए धैर्य चाहिए. सुनना कोई सरल काम नहीं. यह पराक्रम का कार्य है. इसलिए आपने देखा होगा कि ज्योतिष में पराक्रम स्थान तीसरे स्थान को माना गया है. जैसा सुनेगा वैसी ही व्यक्ति में इच्छा होगी और तदनुसार लाभ होगा अतः इच्छाओं और लाभ के लिए ग्यारहवें स्थान का विचार है. तीसरे और ग्यारहवें भाव में पापग्रहों की स्थिति को साधारणतः अच्छा माना जाता है. तीसरा स्थान दायाँ कान है और ग्यारहवाँ स्थान बायाँ. व्यक्ति को अच्छा बुरा सुनाने वाले प्रायः उसके अपने ही लोग होते हैं. जन्मपत्रिका के ग्यारहवें और तीसरे स्थान में बहुत से ऐसे लोग आ जाते हैं जिनसे आपका नित्य पाला पड़ता हो जैसे मित्र, छोटा अथवा बड़ा भाई/बहन, रिश्तेदार, पड़ोसी, प्रियजन इत्यादि. यदि किसी की पत्रिका में यह दो भाव बली हों तो यह लोग उसके बारे में अच्छी बातें कहते हैं. जो दूसरों के विचार सम्मानपूर्वक सुनें और यथायोग्य ग्रहण करें वो लोग सभी को प्रिय होते हैं. जन्मकुण्डली में यह दोनों भाव बिगड़े होने से व्यक्ति किसी की सुनता नहीं. उस पर यदि द्वितीय स्थान पापप्रभावित हो विशेषकर बिगड़े हुए मंगल से तो एक के बदले चार सुनाता है. ज्योतिष कोई जादू टोने वाली विद्या नहीं है. यह सीधे सीधे हमारे आपके जीवन से जुड़ी है. ज्योतिष और प्राचीन भारतीय शास्त्र बहुत कुछ एक जैसे ही संकेत देते हैं. उदाहरण के लिए बुद्धि के जो आठ गुण बताये गए हैं उनमें श्रवण अर्थात् सुनने का अत्यंत महत्त्व है. शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणं तथा। उहापोहार्थ विज्ञानं तत्वज्ञानं च धीगुणाः॥ ज्योतिष में पंचम स्थान अर्थात् बुद्धि स्थान का लाभ स्थान तृतीय स्थान है और लाभ स्थान पंचम स्थान के सामने का स्थान है अतः व्यक्ति जैसा सुनेगा उसका सीधा सीधा प्रभाव उसकी बुद्धि पर होगा. द्वितीय स्थान बोलने का स्थान है जो कि तृतीय से बारहवाँ स्थान है. व्यक्ति बहुत बोलेगा तो सुनेगा नहीं अर्थात् तृतीय का क्षय होगा. इसलिए द्वितीय में शुभ ग्रहों को अच्छा माना गया है पापग्रहों को नहीं. तृतीय स्थान से हमें पता चलता है कि पराक्रम सुनाने में नहीं सुनने में है. दूसरे की बात सुन कर हमें कोई हानि नहीं लाभ ही होगा यह ग्यारहवें से पता चलता है यद्यपि यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अति हर बात की बुरी होती है. केवल सुनते ही रहना भी अच्छा नहीं. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |