ज्योतिष में एक ही स्थान से एकाधिक विषयों का विचार किया जाता है. जैसे द्वितीय स्थान से धन, कुटुंब, भोजन, वाणी, दाहिना नेत्र आदि का विचार किया जाता है. मोटे तौर पर देखने में यह सब विषय एक दूसरे से भिन्न भले लगते हों परन्तु थोड़ा ध्यान देंगे तो पाएंगे कि यह सब कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. यदि कोई स्वभाव से ही मधुरभाषी हो तो ऐसा कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उसके पारिवारिक जीवन में कलह का अवसर उसने अपनी ओर से ही टाल दिया. प्रिय वचन किसे नहीं सुहाते. मधुर वचन बोलने वाले की सहायतार्थ सभी तैयार हो जाते हैं. वहीं यदि कोई व्यक्ति कठोर वचन कहने वाला हो, सदा दूसरों की निंदा करता हो, अथवा बात बात पर तंज कसता हो तो उसके पारिवारिक जीवन में न चाहते हुए भी क्लेश हो सकता है. आप भी ऐसे किसी व्यक्ति को जानते ही होंगे जिससे मिलने से लोग केवल इसलिए हिचकिचाते हैं कि वह अच्छा नहीं बोलता. द्वितीय स्थान में यदि राहु हो तो व्यक्ति को परनिंदा में बड़ा रस मिलता है और उसी के कारण वह कष्ट उठाता है. द्वितीय स्थान में पापग्रस्त मंगल होने से व्यक्ति को (वाद विवाद में) बोलते बोलते ही क्रोध आ जाता है. उसे आवेश में आते देर नहीं लगती. पीड़ित बुध हो तो व्यर्थ ही हंसी-मज़ाक करता है. केतु हो तो कठोर वचन बोलता है आदि. यही कारण है कि कुंडली मिलान के समय जितना महत्त्व सप्तम स्थान का है उतना ही द्वितीय स्थान का भी है. यह स्थान पापप्रभावित हो तो व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में समस्या होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है. परन्तु स्मरण रहे कि किसी एक पाप ग्रह के द्वितीय स्थान में स्थित होने मात्र से वाणी को दोष नहीं लग जाते. पाप ग्रह भी यदि द्वितीय स्थान में बली हों तो अधिक कष्टकारक नहीं होते. इसी प्रकार द्वितीय स्थान से भोजन का विचार भी कहा गया है. श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से भोजन से सम्बंधित गुणों का वर्णन किया है. तामसिक भोजन तामसिक गुणों को जन्म देता है और सात्त्विक भोजन सात्त्विक गुणों को. सूर्य, चंद्र और बृहस्पति (गुरु) यह तीनों ग्रह सात्त्विक हैं. शनि और मंगल तामसिक हैं. मेरे विचार से तो राहु और केतु को भी तामसिक गुणों वाला ही समझना चाहिए. बुध और शुक्र राजसिक गुणों को दर्शाते हैं. कहने का अर्थ यह कि व्यक्ति जैसा भोजन करेगा वैसे ही गुणों का उसमें समावेश होगा और उसी के अनुसार सम्बंधित ग्रहों को बल मिलेगा. द्वितीय स्थान के सम्बन्ध में एक और बात बड़ी ही विशेष है. द्वितीय स्थान का भाग्य स्थान दशम स्थान है. अर्थात ऐसा कह सकते हैं कि हमें कितना यश मिलेगा, हमारे कर्मों का क्या प्रतिफल मिलेगा यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि हम बोलने की कितनी समझ है. उचित अवसर पर उचित बात कहना जिन्हें आता हो उन्हें प्रायः यश मिल ही जाता है और वे स्वयं को अनावश्यक श्रम से भी बचा ले जाते हैं. अतः जन्मपत्रिका देखते हुए द्वितीय स्थान का विचार अवश्य करना चाहिए. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |