ग्रहों में मंगल एक क्षत्रिय ग्रह है. क्षत्रिय कौन है? श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि जो शौर्यवान हो, तेज से परिपूर्ण (शक्तिशाली) हो, दृढ़ संकल्पशक्ति वाला हो, जो कार्य करे उसमें दक्ष हो, दानी हो (अथवा बड़े मन का हो), और साथ ही साथ नेतृत्व जिसका स्वाभाविक गुण हो वह क्षत्रिय है. भगवान राम ने हनुमानजी के विषय में अगस्त्यजी से जब बात छेड़ी तो उपरिलिखित गुणों का ही वर्णन किया था. उन्होंने कहा था कि हनुमानजी तो ऐसे थे जिनके भीतर शौर्य, दक्षता, बल, धैर्य, बुद्धिमत्ता, नीतिसाधन, वीरता और प्रभाव जैसे गुण सहज ही समाये थे. क्षत्रिय तो सूर्य भी है परन्तु सूर्य राजा है और हनुमान जी को संसार में श्रीराम के सेवक के रूप में जाना जाता है. श्रीराम राजा हैं. श्रीराम की शरण में जाने से पहले सुग्रीव उनके राजा थे. मंगल अपने पराक्रम का उपयोग सूर्य के लिए करता है. मंगल यदि बिगड़ा हुआ हो तो व्यक्ति को चिढ़चिढ़ा, बात बात पर क्रोध करने वाला, शीघ्र धैर्य खोने वाला, अहंकारी, ईर्ष्यालु आदि बनाता है. मंगल प्रभावित व्यक्ति यदि तमोगुण की ओर झुका तो मंगल के अच्छे प्रभाव मिलने की अपेक्षा उलट प्रभाव ही अधिक मिल सकते हैं. मंगल क्रूर है और तमोगुण प्रधान है. पापग्रह है. अतः मंगल का बलवान होना तथा उस पर शुभ प्रभाव होना आवश्यक है. हनुमानजी का यदि ध्यान करें तो मंगलमूरति के अतिरिक्त और कुछ नहीं दीख पड़ता. भक्तिभाव से सभी कार्य करने वाले, महापराक्रमी हनुमानजी तो अपने सभी कार्यों का श्रेय भगवान श्रीराम को देते पाए जाते हैं. अहंकार का तो हनुमानजी के चित्त में कोई स्थान है ही नहीं. वे बलवान तो हैं परंतु ईर्ष्या, द्वेष, दम्भ आदि से दूर ही रहते हैं. सात ग्रहों में यदि मंगल किसी को अपना शत्रु समझता है तो केवल बुध को और बुध बुद्धि का कारक है. वहीं हनुमानजी जितने बलवान है उससे अधिक बुद्धिमान हैं. साक्षात् सूर्यदेव (जो कि ज्योतिष में आत्मा के कारक और मतान्तर से ब्रह्मस्वरुप है) को हनुमानजी ने गुरु बनाया है. मंगल के पत्रिका में बिगड़ने से जितने अवगुण हो सकते हैं उन्हें हनुमानजी ही दूर कर सकते हैं और हनुमानजी प्रसन्न भी शीघ्र ही हो जाते हैं. सभी प्रमुख देवताओं से वरदान प्राप्त होने के कारण हनुमानजी परम सामर्थ्यवान हैं. मंगल के गुणों से उनके गुण मिलते हैं परंतु उनमें अवगुण कुछ भी नहीं अतः ज्योतिषी प्रायः मंगल के अमंगलकारी प्रभावों से बचने के लिए हनुमानजी की पूजा करने को कहते हैं. |
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November 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |