मधुरेश को विदेश में नौकरी लग गयी. सारे सगे सम्बन्धियों में मधुरेश रातोंरात सबसे अधिक चर्चा का विषय बन गया. विवाह के बाद यदि कभी उसके बारे में लोगों ने उत्सुकता दिखाई थी तो वो इस विदेश की नौकरी के समाचार के कारण ही हो सका था. अपने परिवार में वो पहला लड़का था जो विदेश जा रहा था. मधुरेश ने भी खूब बढ़ चढ़ कर अपनी नयी नौकरी में मिलने वाली सुख सुविधाओं का बखान किया. जितना आनंद उसे दूसरों को मुख पर आश्चर्य देखने में मिल सकता था उस से भी अधिक उसे अपने गुप्त शत्रुओं एवं प्रिय मित्रों को जलाने में मिलता था. किन्तु चाणक्य ने कहा है, मनसा चिन्तितं कार्यम् वाचा नैव प्रकाशयेत्। मन्त्रेण रक्षयेद् गूढं कार्ये चाsपि नियोजयेत॥ यदि कोई योजना बनाई हो तो जब तक वह कार्यरूप में परिणत ना हो जाए, उसे एक गूढ़ मंत्र की भांति अपने तक ही रखना चाहिए. बड़े बूढ़े भी कहते हैं मन में ही चिंतन करना, उसे प्रकाश में नहीं लाना. कुछ लोग इसे नज़र (दृष्टी) लग जाने से भी जोड़ते हैं. जो भी हो, बहुत से लोगों के दूध में मक्खी तो पड़ ही जाती है. अधिकांश लोगों के कार्य में या तो विघ्न पड़ जाते हैं या फिर काम होता ही नहीं.
मधुरेश की कहानी में भी कुछ ऐसा ही हुआ. जिस देश में वह जाने वाला था, एकाएक ही वहाँ भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं समाचारों के मुखपृष्ठ पर छा गईं. कभी कहीं किसी को पीटा जाता था, तो कहीं भगाया जाता था. परिवार के लोगों ने उसे ना जाने की सलाह दी. ठीक भी था. अब जिन लोगों को वह जलाया करता था, उनके भाव उसे जलाने लगे. परन्तु वह कर क्या सकता था. अब अपने देश में दोबारा नौकरी ढूंढें तो अभिमान पर चोट लगेगी और विदेश जाए तो शरीर पर. करे तो क्या करे! ज्योतिषियों के पास भी कई बार ऐसे लोग आते हैं जिनके बनते काम इसी कारण बिगड़ जाते हैं कि वे अपने मन की बात अपने तक नहीं रखते. मित्रों और सम्बन्धियों को बताते हैं. योजना पूरी होने से पहले ही ढिंढोरा पीट देते हैं और फिर काम या तो होता नहीं या रुला रुला कर होता है. और ज्योतिष में ऐसे योग हैं भी जिनसे पता लग जाए, इसीलिए ज्योतिषी कई बार लोगों को इस सम्बन्ध में सावधान रहने को कहते हैं. धार्मिक कार्यक्रमों में भी प्रायः ऐसा सन्देश दिया जाता है कि भक्त को अहंकार हुआ नहीं कि भगवान उसे तोड़ने कि व्यवस्था कर देते हैं. मधुरेश का काम अंततः हुआ तो और वह विदेश भी गया किन्तु नियत समय से तीन महीने बाद. हुआ यूं कि अपने देश में कोई नौकरी उसे मिली नहीं. जो पहले लोकप्रिय था वो अब मज़ाक का विषय बन गया. एक दिन उसने डरते हुए अपने विदेशी अधिकारी से चर्चा करी तो उसके नए अधिकारी ने बताया कि वातावरण अनुकूल है, घबराने कि कोई बात नहीं फिर भी यदि उसे लगता है तो परिस्थिति को समझते हुए उसे काम पर आने के लिए तीन महीने का अतिरिक्त समय दे देगा. काम हो गया, परन्तु जब लोगों ने उसे विदेश के बारे में पूछना भी छोड़ दिया. जब उसका विदेश जाना लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं रह गयी थी. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |