आप ऐसे कई लोगों को जानते होंगे जो ज्योतिष के अनुसार नाम तो रखते हैं परन्तु साथ ही साथ व्यावहारिक उपयोग के लिए दूसरा नाम भी रखते हैं. ज्योतिष के अनुसार सुझाया गया नाम प्रायः उपयोग में ही नहीं आता. कुछ लोगों ने मुझे बताया कि ज्योतिष द्वारा बताया नाम उपयोग में लाना शुभ नहीं होता. तो फिर ज्योतिष वाला नाम रखते ही क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि संतान का नाम सुझाने की प्रचलित विधि क्या है. ज्योतिषी पता लगाता है कि बालक (बालक अथवा बालिका को इस लेख में बालक शब्द से ही समझें) का जन्म किस नक्षत्र के किस चरण में हुआ. एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण के लिए एक अक्षर है. जैसे ही चरण निर्धारित हुआ वैसे ही उस अक्षर को चुन लिया जाता है और वृद्ध अथवा गुणी लोग बालक का नामकरण कर देते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि संतान का नाम नहीं केवल प्रथम अक्षर बताया जाता है. यह माता पिता अथवा गुरुजनों पर है कि वह क्या नाम रखें. किस नक्षत्र के किस चरण के लिए कौन सा अक्षर है यह नीचे देखें: साधारण भाषा में कहें तो नक्षत्र राशि से छोटा होता है और चरण नक्षत्र का एक चौथाई भाग होता है. आप समझ सकते हैं कि ज्योतिष द्वारा बताया गया नाम कितना महत्त्वपूर्ण है. इस पर एक और बात कभी कभी सुनने में आती है कि बालक का जन्म किस पाद में हुआ है. यह पाद क्या होता है? चार पाद होते हैं - सुवर्ण, रजत, ताम्र और लौह. जातक की जन्मपत्रिका में चन्द्रमा की स्थिति किस भाव में है इसका मोटा मोटा अनुमान पाद से लग जाता है. अब आप सोचिये कि यदि किसी को व्यक्ति के ज्योतिष वाले नाम का पता लग जाये और साथ ही पाद का भी पता लग जाये तो ज्योतिष में रूचि रखने वाला व्यक्ति उसके बारे में बहुत कुछ पता लगा सकता है. बिना उसकी सटीक जन्म तिथि, समय, अथवा स्थान जाने बहुत कुछ पता लग सकता है. जन्म का वर्ष, अथवा मास पता लगाना तो कोई बड़ी बात है ही नहीं. इस जानकारी का कोई दुरुपयोग न कर सके इस लिए लोग अपने ज्योतिष वाले नाम को छुपाने लगे और न जाने कब यह धारणा बन गयी कि व्यक्ति को ज्योतिष वाला नाम रखना अशुभ होता है. नाम तो एक चाभी है उस जानकारी तक पहुँचने की जो सज्जन के हाथ लगी तो हितकारी और दुर्जन के हाथ लगी तो हो सकता है अहित करने वाली हो जाये. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |