इन दिनों एक बात बहुत चल रही है - "क्यों हाथों की लकीरों से हैं आगे उंगलियां, रब ने भी किस्मत से आगे आपकी मेहनत रखी". कोई दस वर्ष पहले एक और बात बहुत चली थी - "किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते". ऐसी बातों को बहुत सराहा जाता है और उसका कारण भी है. क्या? आइये जानने का प्रयास करते हैं. जब मैं चौथी या पांचवी कक्षा में था तब एक दिन कुछ लड़कियाँ अपनी हथेलियों को मिला कर कुछ हँसी कर रही थीं. कौतुहलवश मैंने देखा तो पता चला कि जिसके हाथ में चन्द्रमा बनता है उसे सुन्दर जीवनसाथी मिलता है. जब कुछ बड़े हुए तो कोई कोई भाग्य रेखा को देख कर आर्थिक स्थिति कहता था. कभी कोई हाथ के बीचोंबीच गड्ढा होने पर कुछ कहता तो कोई जीवन रेखा के छोटा होने पर कुछ कहता. क्या उसमें कोई सत्य था? जब मैंने हस्तरेखा सीखना शुरू किया था तब मुझे मेरे गुरु ने पहले ही समझा दिया था कि लकीरों पर तभी आना है जब हाथ देखना आ जाये और यदि मैंने ऐसा न किया तो फिर मुझे कुछ सीखने को न मिलेगा. तो क्या हाथ देखना और लकीरें देखना अलग होता है? हथेली की बनावट, हथेली का आकार, सख्ती, रंग, हथेली के पीछे बालों की न्यूनता/अधिकता, बालों का रंग, अँगुलियों की बनावट, दृढ़ता, अँगुलियों की लम्बाई, पर्वों की लम्बाई, नखों की बनावट, रंग, आदि अनेक बातों को समझ लेने के पश्चात् कहीं जा कर लकीरों को ठीक प्रकार से समझा जा सकता है. और अंगूठा? जिस अंगूठे ने एकलव्य का भाग्य बदल कर रख दिया उसकी तो कोई बात भी नहीं करता. तो सटीक भविष्यफल करने के लिए लकीरों से पहले अँगुलियों को ही समझा जाता है न कि केवल लकीरों को. इसी प्रकार - "किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते" भी अधूरी बात लगती है. भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में सम्पूर्ण शरीर का अध्ययन किया जाता है वह केवल हाथों की लकीरों तक सीमित नहीं है. शरीर के किसी भाग की लकीरें तो एक छोटा सा हिस्सा भर है. वैसे यदि किसी को लकीरें ही देखनी हैं तो माथे पर भी देखी जा सकती हैं और ऐसा शायद ही कोई होगा जिसका माथा न हो. अधूरी जानकारी के चलते लोगों का ज्योतिष से विश्वास उठने लगता है परन्तु इससे क्या ज्योतिष शास्त्र ग़लत हो जाता है? नोट: मैं कोई हस्तरेखा विशेषज्ञ नहीं और इस लेख का उद्देश्य किसी को हाथ दिखाने के लिए आमंत्रित करना भी नहीं. वर्षों पहले कुछ समय के लिए सीखा था परन्तु अच्छे गुरु से सीखने को मिला इसलिए कुछ मूलभूत सिद्धांतों से अवगत हूँ. |
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October 2020
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Author - Archit
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः I ज्योतिष सदा से ही मेरा प्रिय विषय रहा है. अपने अभी तक के जीवन में मुझे इस क्षेत्र से जुड़े बहुत से लोगों के विचार जानने का अवसर मिला. सौभाग्यवश ऐसे भी कई लोगों से मिला जिन्हें इस क्षेत्र में विश्वास ही नहीं था. फ्यूचरपॉइंट संस्था (दिल्ली) से भी बहुत कुछ सीखा और अपने पिताजी से तो अभी भी यदा कदा सीखते ही रहता हूँ. ज्योतिष अच्छा तो बहुत है परंतु इसमें भ्रांतियां भी उतनी ही फैली हुई हैं जिस कारण कभी कभी बड़ा दुःख होता है. नौकरी के चलते ज्योतिष में समय देना थोड़ा कठिन हो जाता है अतः ईश्वर की प्रेरणा से अपने विचारों को प्रकट करने के लिए और इनसे किसी का कुछ भी भला हो सके इसी हेतु लेख लिखा करता हूँ. |