मेरे एक परिचित हैं जो अपने साथ काम करने वाले एक व्यक्ति से बहुत व्यथित हैं. संयोग की बात है कि यह साथ वाला उनके साथ रहता भी है (रूम पार्टनर). उनका कहना है कि उन्होंने उस व्यक्ति के लिए लोगों से लड़ाई मोल ली, उसकी पग पग पर सहायता की और आज वही उनको हल्के में लेने लगा है. छोटी छोटी बातों पर उनका अपमान करता है और अवसर मिलने पर उनके साथ चालाकी करते भी नहीं चूकता. यह सज्जन उनका बाल भी बाँका नहीं कर पाते. कल ही उन्होंने मुझे कहा - "मैं व्यर्थ की किचकिच पसंद नहीं करता अतः चुप हूँ वरना उसे कभी का ठीक कर देता". कहना कठिन है कि ऐसा उन्होंने मुझे सुनाने के लिए कहा अथवा वे सच में ऐसा में समर्थ हैं परंतु उन्होंने मुझे जो आपबीती सुनाई, उससे मुझे यह ग़ज़ल लिखने की प्रेरणा मिली:
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Author- Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
July 2020
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