पहले पहल लोग नौकरी शब्द का प्रयोग किया करते थे. पुराने लेखकों की कहानियों में तो सरकारी नौकर जैसे शब्द बड़े अधिकारियों के लिए भी लिखे मिल जायेंगे. और उसमें अनुचित कुछ भी नहीं. हैं तो नौकर ही! स्तर का ही तो अंतर है. परन्तु कुछ शब्द हिंदी में बोले जाएं तो कई लोगों के अहम को बड़ी ठेस पहुंचती है और वही शब्द अंग्रेजी में बोला जाये तो कोई बात नहीं. वैसे भी नौकरी शब्द से नौकर होने की बू आती थी और फिर यदि पढ़े लिखे अंग्रेजी बोलने वाले लोग स्वयं को नौकर कहलवाने लगे तो उनमें और घर में पोछा मारने वाले या खाना बनाने वाले में भेद ही क्या रहा. पैसे के भेद को छोड़ दें, तो हैं तो दोनों नौकर ही. इस से बचने के लिए ही कुछ लोगों ने नौकरी शब्द को "सर्विस" कहना शुरू किया. "सर्विस" शब्द में कुछ हद तक सेवा भाव है और यही समस्या है. पैसे ले कर की जाने वाली सेवा और निस्वार्थ सेवा में बड़ा अंतर हो सकता है. और प्रत्येक व्यक्ति सेवा करना भी तो नहीं चाहता. कई लोगों के अहम् को इस बात से बड़ी ठेस पहुँचती है कि वे सेवा कर रहे हैं. अब हर कोई सेवा भाव से नौकरी (सर्विस) में आये, यह भी तो आवश्यक नहीं! ऐसे में एक नया शब्द खोजने की बड़ी भारी आवश्यकता थी. मालिकों को भी पता चल गया था कि नौकर अब नौकर कहलवाना नहीं चाहते. उन्हें मालिक होने के भ्रम में डाल दो तो वे ख़ुशी ख़ुशी नौकर बने रहेंगे. भला हो उसका जिसने जॉब शब्द को इस सन्दर्भ में स्थापित किया. अहंकारी लोग बड़े प्रसन्न हुए कि चलो इसमें न तो सेवा है, न ही नौकरी और न किसी और प्रकार का कोई दासता का भाव. कुछ है तो बस कार्य. किसी भी प्रकार का कार्य. अब यदि कोई कहे "मैं जॉब में हूँ" तो यह सन्देश नहीं जाता कि वह नौकर है, अपितु मात्र इतना कि यह व्यक्ति कहीं पर कार्यरत है. परन्तु क्या इस से सत्य में कोई परिवर्तन आता है. कूड़े की दुर्गन्ध छुपाने के लिए मानो कोई ढेर सारी अगरबत्तियां जला दे. अथवा कूड़ा फ़ेंक देने की अपेक्षा कूड़ेदान पर ढक्कन लगा दे. क्या इस से कूड़े की दुर्गन्ध जाएगी? |
Author- Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
July 2020
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