रात के १२ बज रहे थे. यह सोने का समय था परन्तु मनोज की आँखों में नींद न थी. रह रह कर उसे अपने माता पिता का विचार आ रहा था. जब से नौकरी के फेर में पड़ा है पैसा तो मिल रहा है परन्तु माता पिता के सान्निध्य का सुख कहीं खो गया है. अपने शहर बनारस गए उसे कितना ही समय हो गया. कहने को तो दूरभाष (फ़ोन) पर बात जब चाहे हो जाती है परन्तु वो है तो दूर ही न. पिताजी अब ६७ वर्ष के हो चले हैं. माताजी इस वर्ष ६० पार कर जाएँगी. मनोज अकेला लड़का है अपने माता पिता का. यद्यपि जीवन का अटल सत्य सभी को पता है परन्तु माता पिता के बारे में कुछ अनिष्ट विचार मन में आते ही वह काँप उठता है. माता पिता का उसे कितना सहारा है यह केवल वही जानता है. उनके बाद.... नहीं.... वह आगे सोच भी नहीं पाता. कभी कभी वह सोचता है कि उसके बाद बनारस वाले उनके घर का क्या होगा. कौन वहाँ की देखभाल करेगा? गंगा माता के दर्शन करे भी कितना समय हो गया. कितने धन्य हैं वे लोग जिनका जीवन गंगा किनारे जीवन कटता है. उसके मन में आता है कि नौकरी छोड़ कर अपने नगर चला जाये परन्तु यदि नौकरी छोड़ दे तो कमाई कैसे करे. उसके एक मित्र ने ऐसा निर्णय लिया था और आज उसकी दुर्गति देख कर मनोज ऐसा कोई निर्णय लेने में थोड़ा हिचकिचाता है. अकेला होता तो कोई बात नहीं थी परन्तु परिवार का भरण पोषण तो अब उसका दायित्व है. कर्त्तव्यों से भागना उसे ठीक भी नहीं लगता था. आदिशंकराचार्य ने भी तो कहा है, "क्षीणे वित्ते कः परिवारः". भगवान श्रीकृष्ण ने भी तो कर्म करने को कहा है. न जाने क्यों उस क्षण उसे अपने (बनारस के) दुकानदार मित्रों से थोड़ी ईर्ष्या हुई जो अपने नगर में रह कर कमाते हैं और माता पिता की सेवा का सुख भी प्राप्त करते हैं. परन्तु ऐसा विचार आते ही उसने अपने को समझाया कि जो हो रहा है वह ईश्वर की ही इच्छा है. कर्त्ता (करने वाला) मैं नहीं हूँ, वह तो ईश्वर है. संसार में जो हो रहा है, जो मैं कर रहा हूँ उसकी इच्छा है. उसका आदेश है. मेरे हाथ में तो कुछ है ही नहीं. मुझे सम्मानपूर्वक उसका पालन करना चाहिए. सोचते सोचते न जाने कब वह सपनों के संसार में प्रवेश कर गया. सुबह उठा तो ८:३० बज रहे थे और ९:३० बजे तक कार्यालय पहुँचना था. उसने ईश्वर को हाथ जोड़े और नौकरी पर जाने के लिए जल्दी जल्दी तैयार होने लगा. |
Author- Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
July 2020
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