दोपहर का समय था. जैन साहब खिड़की में बैठे हुए बारिश की बूंदों को देख रहे थे कि मोबाइल पर एक सन्देश आया जो ससुराल वालों को कोसते हुए लड़कियों की विदाई सम्बंधित कुछ बातें कहता था. कभी कभी मन इतना उलझा होता है कि व्यक्ति की आँखों के सामने जो होता है वह देखना छोड़ कर मन में जो होता है वह देखने लगता है या उस सन्देश से जुड़ा कुछ और ही विचार पैदा कर लेता है और फिर वहीं खो जाता है. जैन साहब का भी वही हुआ. उनके मन में सहसा ही अपने बेटे का विचार उठा. मोबाइल पर आया सन्देश कहता था कि बेटियों को अपने परिवार वालों से मिलने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है. जैन साहब सोचने लगे कि उनका बेटा, जो बाहर नौकरी कर रहा है, उनसे मिलने आना चाहे तो कितने दिन उसे अपने पास रोक कर रख सकते हैं. पाँच दिन की छुट्टी मिली तो बहुत. उसमें भी कोई न कोई सहकर्मी काम के चलते दूरभाष (टेलीफ़ोन) से उसकी सेवा लेता ही रहता है. कभी कभी उन्हें लगता था कि जैसे बेटी ससुराल में रहती है वैसे ही बेटा (या आजकल बेटी भी) की स्थिति नौकरी में रहती है. नौकरी देने वाले कैसे हैं और अपना स्वभाव कैसा है, दोनों का तालमेल ही सुखी जीवन की कुञ्जी है. जिनकी बेटियाँ दूसरे शहर में कार्यरत हैं उन्हें लगता है कि विवाह के बाद बेटी विदा हुई (अथवा करेंगे) परन्तु वास्तव में विदा तो वह बहुत पहले ही हो चुकी होती है. जैन साहब के कोई लड़की तो नहीं है पर विदाई क्या होती है कोई उनसे पूछ कर तो देखे. अपने लड़के की विदाई तो उन्होंने उसी दिन कर दी थी जिस दिन उसे पराये नगर में पढ़ने के लिए भेजा था. उस दिन के बाद से बेटा वापस नहीं लौटा. छुट्टी ले कर कभी-कभार ही आता है. बाहर ही नौकरी पकड़ ली है, वहीं घर बना लिया है और वहीं स्थित हो चुका है. जैन साहब स्वयं भी एक बहुराष्ट्रीय संगठन (मल्टीनेशनल कंपनी) से सेवानिवृत्त हुए थे. उन्हें पता था कि अधिकांश निजी संस्थाओं में स्थिति इतनी विकट है कि माता अथवा पिता के देहांत पर पंद्रह दिन की छुट्टी कितनी कठिनाई से मिलती है. नौकरी देने वालों को विवाह के लिए छुट्टी देने तक में मुसीबत होती है. ऐसे बेटे के पिता को क्या विदाई का मालूम न होगा. बेटी ससुराल से आती है तो कदाचित् ससुराल वाले भी दिन में इतनी बार याद नहीं करते होंगे जितना बेटे को नौकरी देने वाले किया करते हैं. वह माँ की तरह बेटे को अपने से चिपटा तो नहीं सकते. पिता जो ठहरे - पर पिता का मन भी कोई ममता से रहित तो नहीं होता. इसलिए जब कभी वह घर आता है तो उसे कहीं जाने नहीं देते. चाहते हैं उनका प्यारा उनकी आँखों के सामने ही रहे. वह बेटा जिसे उन्होंने २० साल पहले विदा किया था जब उसे शहर से बाहर पढ़ने भेजा था. |
Author- Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
July 2020
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