पहले पहल लोग नौकरी शब्द का प्रयोग किया करते थे. पुराने लेखकों की कहानियों में तो सरकारी नौकर जैसे शब्द बड़े अधिकारियों के लिए भी लिखे मिल जायेंगे. और उसमें अनुचित कुछ भी नहीं. हैं तो नौकर ही! स्तर का ही तो अंतर है. परन्तु कुछ शब्द हिंदी में बोले जाएं तो कई लोगों के अहम को बड़ी ठेस पहुंचती है और वही शब्द अंग्रेजी में बोला जाये तो कोई बात नहीं.
जब से संजीव इस नयी नौकरी में आया था, बड़ा परेशान था. उसका अधिकारी सुरजीत उसके साथ कुत्तों सरीखा व्यवहार करता था. कहीं पर भी उसे संजीव के मान सम्मान की चिंता नहीं थी. बात बात पर ताने सुन सुन कर संजीव बड़ा दुखी था परन्तु नौकरी नहीं छोड़ता था न ही अधिकारी को उसके व्यवहार के लिए कभी टोकता था.
अब नौकरी छोड़ता भी कैसे? जिसे कुछ आता जाता न हो उसे नौकरी पर रखेगा कौन? इस कारखाने में उसे पचास हज़ार रुपया वेतन मिलता था. इस महंगाई के समय में यूं तो पचास हज़ार कोई बड़ी आय नहीं परन्तु जिसे कुछ आता जाता न हो उसके लिए तो यह बहुत बड़ी ही मानी जाएगी. Mohan was writing an email and for some reason he did not want his subordinate to know about it. Just before he would have finished, Roma (a colleague from other department) arrived on his desk and started reading aloud what he had written in his email.
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Author- Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
July 2020
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