क्या कभी आपके घर पर कोई डाकपत्र (पोस्टकार्ड) आया है जिसमें धार्मिक विषय से जुड़ा कुछ अविश्वसनीय सा लिखा हो और साथ ही यह भी लिखा हो कि ऐसे ही ११, २१, ५१ अथवा जितने भी और पत्र लिख कर लोगों को भेजिए तो घर में समृद्धि होगी. यदि ऐसा नहीं किया तो परिणाम भयानक होंगे. यदि आपको याद नहीं तो अपने परिवार के बड़े लोगों से पूछिये. यह उन दिनों की बात है जब मोबाइल फ़ोन और इन्टरनेट नहीं हुआ करते थे. इसी से जुड़ा हुआ एक और प्रकार उन दिनों चला करता था. कहीं मंदिर के बाहर, किसी भंडारे के निकट अथवा किसी मेले में कोई एक व्यक्ति ढेर सारी पर्चियां ले कर खड़ा होता था और हर आने जाने वाले को निःशुल्क बाँट देता था. कोई तो उसे पढ़ कर फाड़ देता था और कोई उसे पढ़ कर घबरा उठता था कि अब उसे भी पर्ची बांटनी होगी. कभी कभी तो भूले से वो पर्ची एक ही आदमी के पास दो तीन बार आ जाती थी. उस पर्ची में भी ऐसा ही कुछ डरावना लिखा होता था और वह बेचारा व्यक्ति पता नहीं कहाँ से पर्चियां छपवा कर अनजान लोगों में बांटता फिरता था. ऐसा ही एक सन्देश आज मेरे पास भी आया तो मैंने सोचा क्यों न इस पर कुछ पड़ताल करी जाये. सन्देश चुनौतीपूर्ण ढंग से आरम्भ होता है - अगर मानते हो हनुमान जी पृथ्वी पर हैं ...... सीधे सीधे अहम् पर चोट करने वाला वाक्य है. दो प्रकार के लोग इस सन्देश को प्रसारित करेंगे - एक तो वो जो अहंकार वश कहेंगे हाँ मैं मानता हूँ और दुसरे वो जो बड़े दुःखी हैं. वैसे लोभी भी इसे प्रसारित कर सकते हैं. धन भला किसे नहीं चाहिए. इस कहानी में कुछ बातें विचित्र है:- १) पेड़ से एक बन्दर नीचे उतरा, बन्दर को देख कर पुजारी जी भागे: साधारणतः पुजारी बंदरों से घबराते नहीं क्योंकि प्रतिदिन उनका पाला पड़ता है बंदरों से. ऐसा मैं इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मैं एक धार्मिक नगरी से हूँ जहां बन्दर बहुतायत में हैं. परंतु फिर भी चलो मान लेते हैं कि पुजारी जी घबरा कर नहीं किसी और कारण से भागे. २) हनुमान जी कहते हैं "मैं पृथ्वी पर जन्म लूँगा". परंतु क्यों? इस देह में क्या समस्या है. जो देह हनुमान जी ने त्रेतायुग से धारण करी हुई है उसे वह अब क्यों छोड़ेंगे? ३) जो भी मेरे नाम से 11 बार इसे किसी अन्य ग्रुप में भेजेगा उसकी मनःकामना 24 दिन में पूरी होगी: सबसे आश्चर्यजनक बात यही है. हनुमान जी ने ग्रुप शब्द का प्रयोग किया जो व्हाट्सएप्प में ही अधिक देखने को मिलता है. यह सन्देश भी मेरे पास व्हाट्सएप्प पर ही आया. भाजपा ने जिस तरह चुनाव प्रचार में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग किया वो तो समझ में आता है परंतु हनुमान जी को भी व्हाट्सएप्प की आवश्यकता पड़ेगी यह थोड़ा समझ के बाहर की बात है. इसके बाद भी किसी को विश्वास न हो तो रुपयों का लोभ दिखाया गया है. किसी को ५० लाख रुपये मिल गए तो किसी को सोने की मोहरों से भरा कलश तो किसी का धंधा अच्छा चलने लगा. एक का तो स्वाइन फ्लू भी ठीक हो गया. जिसने विश्वास नहीं किया उसकी बड़ी हानि हुई. सन्देश आरम्भ तो हुआ जय श्री राम से और समाप्त हुआ जय हनुमान जी से. ईश्वर के नाम पर जितना मूर्ख लोगों को बनाया जाता हैं उतना संभवतः किसी और के नाम पर नहीं. व्यक्ति दुःखों से इतना भयभीत है कि सुख की आस दिलाने वाली किसी भी बात पर विश्वास कर लेता है. फिर चाहे वो व्हाट्सएप्प पर भेजे हास्यास्पद सन्देश ही क्यों न हो. ऐसे समय उसे हनुमान जी के आराध्य भगवान राम का स्मरण नहीं होता जिनका पूरा जीवन ही कठिनाइयों से भरा था. भगवान कृष्ण के गीता के सन्देश नहीं स्मरण हो आते जिनमें कर्मयोग पर बल दिया गया है. ऐसे समय बस यह लगता है कि यह सन्देश आगे भेज दिया तो क्या जायेगा. धर्म के प्रचार के लिए भगवान को व्हाट्सएप्प, फेसबुक अथवा ऐसे किसी इन्टरनेट माध्यम की आवश्यकता नहीं. समय समय पर वह गुरु नानक, ज्ञानेश्वर, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गजानन महाराज, साईं बाबा, मीराबाई, गोस्वामी तुलसीदास और अन्य महान संतों को पृथ्वी पर भेजता रहा है. यदि कोई वास्तव में ईश्वर भक्त हो तो वह ऐसे संदेशों का तिरस्कार ही करेगा जो न केवल अन्धविश्वास फैलाते हैं अपितु धर्म को अपयश भी देते हैं. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
Categories
All
|