सातवें प्रकरण को आरम्भ करते हुए राजगोपाल बोला, 'आत्मज्ञान की प्राप्ति होने पर जनक ने अनुभव किया कि वे तो अनन्तस्वरूप हैं. उनका रूप इतना विशाल है कि संसार एक नौका के समान उनके भीतर इधर से उधर तैर रहा है. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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