लेटी तो थी वह दो घंटे से बिस्तर पर सोने की तैयारी में आँखें तो कब से भारी थीं नींद से पर मन अधिक भारी था नींद आने ही नहीं देता था आँखें बंद हुई नहीं कि हुए विचार शुरू तंग आ कर टीवी पर चलाये कई धर्मगुरु बात कुछ बनी नहीं टीवी पर आने वाले सभी अच्छा भी बोलें यह कोई ज़रूरी तो नहीं पतिदेव उस समय जगे हुए थे परन्तु मोबाइल पर लगे हुए थे पिछले कुछ वर्षों से मोबाइल ही हुआ उनका संसार था अतः उनसे कुछ बोलना बेकार था दोनों नौकरी वाले थे पति को अधिकारी तंग करता था तो पत्नी को घटिया सहकर्मी (colleague) अखरता था अधिकारी बुरा हो तो फिर एक बार चलता है पर सहकर्मी नीचवृत्ति का हो तो फिर बहुत खलता है सत्संग से बेचारे दोनों ही वंचित थे नीच का संग बिना मांगे मिल रहा था परेशान दोनों ही थे तो तय किया दोनों अपनी परेशानी मन में ही रखेंगे अपनी अपनी पीड़ा साझा नहीं करेंगे उनका सोचना था ऐसे घर में शांति रहेगी इसलिए एक टीवी देखता था एक मोबाइल जिसका जैसा शौक एक तो बेटा जब से हुआ है चिकित्साशास्त्र का पूरा ज्ञान हो गया है शहर के सारे चिकित्सालय घूम लिए हैं समाधान फिर भी कहीं नहीं हुआ है जीवन में वैसे ही क्या कम दुःख थे मेरे ही पुत्र को इतना त्रास क्यों बेटे का विचार मन में आया तो नौकरी, सहकर्मी सब भूल गयी वो संसार की कोई पीड़ा याद न रही माँ की यही तो विशेषता है अपनी संतान के सुख के लिए वह अपने सब कष्ट भूल जाती है बालक का मुख देख जाने कहाँ से उसके मन में आया छत्रपति शिवाजी ने पुत्र को लेकर कितना कष्ट उठाया उनके मन को घोर कष्ट था, पर वह हारे नहीं भगवान कृष्ण तो भगवान थे उन्होंने भी साम्ब जैसा पुत्र पाया जिसने अपने कृत्यों से यादव कुल का विनाश कराया अष्टावक्र के तो आठ अंग टेढ़े थे परन्तु ब्रह्मज्ञानी थे अपने ज्ञान से उन्होंने पिता को छुड़वाया उसकी सहेली बेला बता रही थी कि उसने सुना है भगवान सूर्य को भी शनि देव की चिंता रहती है बेला तो बेला है, वह कुछ भी बोल सकती है मुस्कुराते हुए उसने धीरे से सिर हिलाया तभी उसके मन में एक आवाज़ आयी तू काहे को इतनी चिंता करती है माई होता तो वही है जो ईश्वर की इच्छा हो तू बस यह मांग कि वह भक्त सच्चा हो बाकी उस पर छोड़ दे वह अपने आप देख लेगा उसको बात सही लगी सूर, कबीर, मीरा, तुलसी तुकाराम, नामदेव, निवृत्ति ज्ञानदेव, रविदास इत्यादि सभी का उसने ध्यान किया सत्पुरुषों के ध्यान से आत्मा शांत हुई और न जाने कब वह बेचारी दिन भर की थकी हारी सो गयी |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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