लिंग पुराण में दारुकासुर की एक कथा है. यह असुर बड़ा बलवान और भयानक कृत्य करने वाला था. सभी देवता उस से व्यथित थे. दारुकासुर से निबटने का कोई उपाय भी उन्हें न सूझता था क्योंकि ब्रह्माजी को प्रसन्न करके दारुकासुर ने वरदान जो ले रखा था. असुर तपस्या करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे और वरदान भी बड़ा सोच समझ कर मांगते थे. बलवान तो वे होते ही थे परंतु मृत्यु तो सभी को आनी है. इस से बचने के लिए अमर होना आवश्यक था. उन्हें पता था अमर होने का वर ब्रह्मा जी देंगे नहीं तो वे ऐसा उपाय निकालते थे कि ब्रह्मा जी की बात भी रह जाए और उन्हें मनचाहा वर भी मिल जाए. दारुकासुर ने भी ऐसा ही अनोखा वर माँगा. उसने वर माँगा कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों हो. दारुकासुर को विश्वास रहा होगा कि एक अबला स्त्री भला उसका क्या बिगाड़ लेगी परंतु उसका यही वरदान आगे चल कर देवी के काली रूप के अवतार का कारण हुआ. दारुकासुर के अत्याचारों से त्रस्त हुए देवताओं ने स्त्री रूप धर कर भी उसे परास्त करना चाहा परंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात! हारे हुए देवताओं को जब कोई उपाय न सूझा तो ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. ब्रह्मा जी के पास कहाँ कोई उपाय था. यदि था भी तो संभवतः वह उसे स्वयं नहीं कहना चाहते थे. वे देवताओं को ले कर भगवान शंकर के पास पहुँच गए. भगवान शंकर ने जब सुना कि उस अत्याचारी असुर का वध केवल एक स्त्री ही कर सकती है तो उन्होंने साक्षात् शक्तिस्वरूपा माता पार्वती से देवताओं की सहायता के लिए निवेदन किया. कहते हैं उस समय माता पार्वती का एक अंश गुप्त रूप से (वहाँ उपस्थित देवताओं के बिना जाने) भगवान शंकर के शरीर में प्रवेश कर गया और दोनों के सम्मिश्रण से एक देवी प्रकट हुई. नीलकंठ भगवान के कंठ में जो भयानक विष है उस के प्रभाव से उनका रंग काला था. तीन नेत्रों वाली उस देवी के हाथ में त्रिशूल था और शरीर पर सुन्दर वस्त्र और आभूषण थे. निश्चय ही वह रूप और शक्ति का दिव्य संगम था.
माता से उस छोटे से बालक को यूं रोते न देखा गया. स्त्री शक्तिस्वरूपा तो है साथ ही अत्यंत ममतामयी भी है. उस छोटे से बालक को रोता देख देवी ने ममता और माया के वशीभूत हो कर उसे अपनी गोद में उठा लिया और स्तनपान कराने लगी. उन्हें समझ में न आया कि यह भगवान शिव है. भगवान शिव ने उचित अवसर जान कर दूध के साथ साथ उस देवी का समस्त क्रोध भी पी लिया. क्रोध करने के लिए बहुत ऊर्जा चाहिए होती है. जिसमें ऊर्जा है वही क्रोध कर सकता है. जब भगवान ने महाकाली का क्रोध पी लिया तो हो सकता है इसी (ऊर्जा के ह्रास) के कारण देवी को मूर्च्छा आ गयी और वे बेहोश हो गयीं. जब देवी की चेतना शाम तक भी नहीं लौटी तो उन्हें पुनः जगाने के लिए संध्याकाल में (शाम को) देवाधिदेव महादेव ने भूत प्रेतों सहित ताण्डवनृत्य किया. संगीत में अद्भुत शक्ति है. उस मनोहारी दिव्य नृत्य का ऐसा प्रभाव हुआ कि देवी की चेतना पुनः लौटी और वह भी नृत्य करने लगी. अंततः सभी देवताओं ने उनकी तथा माता पार्वती की स्तुति की और अपने अपने धाम को लौट गए.
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Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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