![]() तुम्हारे अधिकार में केवल तुम्हारा कर्म है पार्थ, कर्मफल पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं. महाभारत की जो श्रृंखला टीवी पर प्रसारित हुई थी उसमें श्री कृष्ण द्वारा कहा गया यह वाक्य है. मेरा तो ऐसा मानना है कि न केवल कर्मफल पर अपितु कर्म पर भी हमारा कोई अधिकार नहीं. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, "होइहि वही जो राम रचि राखा". एक अन्य प्रसंग में तुलसीदास कहते हैं, "बिनु सत्संग विवेक न होइ, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई". राम कृपा के बिना तो सत्संग भी नहीं मिलता. सभी को यह ज्ञात है कि सत्संग से विवेक होगा किन्तु वो सत्पुरुष मिलेगा ऐसा केवल राम के अधीन ही है तो फिर कर्म पर अपना अधिकार कहा रहा. एक अन्य कहावत भी है, "मन चेती नहीं होत है, हरि चेती तत्काल". मैंने लोगों को जीवन भर गुरु की खोज में भटकते देखा है. कई लोगोँ के बारे में पढ़ा जिनको गुरु नहीं मिल सका. यह सब हरि इच्छा नही तो और क्या है. रावण और कुम्भकर्ण दोनों ने घोर तप किया और दोनों को ब्रह्मा के दर्शन भी हुए किन्तु वरदान मांगते समय कुम्भकर्ण ने इंद्रासन के स्थान पर निद्रासन मांगा. माता सरस्वती जिसको जैसी बुद्धि दे मनुष्य वैसा ही आचरण करता है. संभवतः इसीलिए ज्ञानी जनों ने मन पर विजय पाने का उपदेश दिया है. प्रसिद्ध हस्त रेखा विशेषज्ञ कीरो ने भी कहा है कि मनुष्य का भाग्य और कुछ नहीं उसके विचारों का परिवर्तित हो जाना ही है. जैसा समय आता है मनुष्य की बुद्धि वैसी ही हो जाती है. जब गीदड़ की मौत आती है तो वो जंगल की ओर भागता है, यह कहावत भी इसी पर आधारित है ऐसा प्रतीत होता है. सब ईश्वर पर ही छोड़ दिया जाये और आचरण की चिंता न की जाए ऐसा एक उपाय तो हो सकता है किन्तु यह कहना सरल है और इस मार्ग में जो कठिनाइयाँ आती हैं वही परीक्षा हैं. कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोsस्त्वकर्मणि |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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