मिल सकता है किसी जाति को आत्मबोध से ही चैतन्य नानक सा उद्बोधक पाकर हुआ पंचनद पुनरपि धन्य कार्त्तिक पूर्णिमा इस बार सोमवार को है. महान कवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों के माध्यम से सभी भारतवासियों को गुरु नानक जयंती की शुभकामनाएं. कार्त्तिक पूर्णिमा हिन्दू धर्म में भी एक महान पर्व है और गुरु नानक जयंती भी इसी दिन मनाई जाती है. गुरु नानक की जन्मतिथि को लेकर लोगों में अलग अलग मत हैं. उदहारण के लिए कुछ लोग कार्त्तिक पूर्णिमा को गुरु नानक का जन्मदिवस मानते हैं तो कुछ लोग १५ अप्रैल, १४६९ को. डॉक्टर गिरिराजशरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक (Guru Nanak Dev) में गुरु नानक का जन्म दिवस १५ अप्रैल, १४६९ बताया है. wikipedia वेबसाइट पर भी १५ अप्रैल १४६९ ही दिया है. जो भी हो, यह तो सभी स्वीकार करते हैं कि गुरु नानक कोई साधारण मानव तो नहीं थे. कहते हैं जब गुरु नानकजी का जन्म हुआ तो और बच्चों की तरह वह रो नहीं रहे थे. उनके चेहरे पर एक दिव्य मुस्कान थी. ज्योतिषियों ने कहा था कि यह बालक आगे जा कर लोगों के लिए पूजनीय होगा और वही हुआ भी. आगे चलकर यही गुरु नानक सिख धर्म का आधार बने. From Islam, Nanak took its unqualified monotheism, rejection of idolatry and the caste system. From Hinduism, he borrowed the metaphysics of the Upanishads and the Gita. बचपन से ही गुरु नानक को ध्यान में विशेष रस मिलता था. निराकार परमात्मा के वे परम उपासक थे. मैं जिन दिनों पंजाब में था तब मुझे किसी ने एक किस्सा सुनाया था - अपने पुत्र को पढाई लिखाई में विशेष ध्यान न देते देख गुरु नानक के पिता ने उन्हें पशु चराने को भेजा. नानक तो आत्मतत्त्व में लीन रहते थे. खेत में बैठे बैठे ही उनका ध्यान लग गया. इतने में पशु पड़ौसी के खेतों में भी चर आये. यह देख पड़ौसी ने गुरु नानक से कहा कि तू किस प्रकार अपने पशुओं का ध्यान रखता है. नानक बोले कि यह खेत भी हरि (ईश्वर) का है और पशु भी हरि के हैं. इसमें क्या बड़ी बात हो गयी. गुरु नानक से कोई समाधान न मिला तो पड़ौसी उनके पिता के पास पहुँच गया और मामला जब और भी आगे बढ़ा तो फैसले के लिए गांव के समझदार लोगों में पहुँचा. जब पड़ौसी ने अपने नुकसान का हर्जाना माँगा नानक ने वहाँ भी यही कहा कि खेत हरि के हैं और पशु भी हरि के हैं. जिसकी इच्छा से खेत से पशुओं ने फसल चरी है उसी की इच्छा से फसल दोबारा आ जाएगी. फैसला कराने वाले को गुरु नानक के प्रभाव का पता था. उसने सुझाया कि एक बार पड़ौसी के खेतों में चलकर देख लेते हैं. जब सब वहाँ पहुंचे तो खेतों में फसल लहलहा रही थी और नानक मुस्कुरा रहे थे. पड़ौसी कभी खेतों की ओर देखता था तो कभी गुरु नानक के चेहरे की ओर. गुरु नानक ने अपने जीवनकाल में ऐसे अनेक कर्म किये जिसे साधारण मनुष्य के लिए सोचना भी कठिन है. उनमें से कुछ स्थानों पर तो अब गुरूद्वारे भी बन चुके हैं और लोग बड़ी श्रद्धा से वहाँ माथा टेकने भी जाते हैं. गुरुद्वारा पंजा साहिब और नानकमत्ता ऐसे ही दो पवित्र स्थल हैं. गुरु नानक की रचनाओं को कई गायकों ने अपने स्वर दिए हैं. उदहारण के लिए पंडित राजन/साजन मिश्र द्वारा "जगत में झूठी देखी प्रीत", "साधो रचना राम बनाई", पंडित जसराज द्वारा "सुमिरन कर ले मेरे मना तेरी बीती उमर हरि नाम बिना", आदि. गुरु नानक पर भी कई लोकप्रिय गीत बनते रहे हैं जैसे "एक बाबा नानक सी", "एहोजइयां खुशियां ले आयीं बाबा नानका" आदि. शिवकुमार बटालवी और भाई वीर सिंह जैसे प्रसिद्ध रचनाकारों ने भी गुरु नानक की प्रशंसा में रचनाएं रची हैं. शिवकुमार बटालवी की कुछ पंक्तियों के साथ इस लेख का समापन करता हूँ. पंजाबी में लिखे शब्दों का भावार्थ: बाबा नानक अपने शिष्य मरदाना के संग नित्य देश - विदेश में फिरते थे. कभी बनारस जा कर गुणीजनों के साथ भेंट करते थे तो कभी मुस्लिम फकीरों से मिलते थे. ब्राह्मण, शेख हो, या पीर, हिन्दू हो या मुस्लिम, गुरु नानक के दरबार में कोई भेद नहीं था. सभी साधु वेश वाले बाबा नानक से मिलते थे. कहीं कोई भेदभाव न हो ऐसा ही बाबा नानक का आदेश था. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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