आज भी जब किसी बारात में "तेनु घोड़ी किन्ने चढ़ाया भूतनी के" गीत गाया जाता है तो दूल्हे की माँ के चेहरे के भाव बदलते देर नहीं लगती क्योंकि जिसकी माँ भूतनी समान लगती हो उसे "भूतनी के" कह कर बुलाते हैं. यह एक प्रकार की गाली है (जहाँ माँ को कोसा जा रहा है) परन्तु चूँकि परदे पर दिखाई गयी इसलिए उभरकर सामने आ गयी. ढँके छुपे बोलने की आवश्यकता न रही. मित्रों को तो नाचने का अवसर मिला परन्तु क्या इस गीत का निर्माण उन माताओं के साथ एक प्रकार का शोषण नहीं था जिनका बेटा घोड़ी चढ़ा हो. कुछ दिनों पहले जब एक प्रसिद्ध अभिनेत्री से पूछा गया कि परदे पर (फिल्मों में) दिखाई गयी असामाजिक बातों का क्या लोगों पर प्रभाव होता है और क्या उन लोगों को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए तो उस अभिनेत्री का कहना था कि समझदार लोगों को सही और ग़लत का भेद पता होता है. समझदार लोगों को पता होता है कि परदे पर दिखाई अधिकांश बातें मनोरंजन के लिए होती हैं अपनाने के लिए नहीं. प्रश्न यही है कि समझदार लोग हैं कितने. "*#%& में दम है तो बंद करवा लो", एक छोटा बच्चा घर में यह गीत गा रहा था तो माँ ने एक चाँटा जड़ा कि यह क्या गा रहा है. बच्चे को समझ ना आया कि उससे भूल कहाँ हुई. उसके प्रिय अभिनेता अभिनेत्री तो इसी गाने पर थिरक रहे थे. बाद में इस गीत में इस शब्द को बदल दिया गया. इसके बाद के कुछ गीतों में काट-छाँट से बचने के लिए "Bum में दम" सुनने में आया. जब "शीला की जवानी" नाम का गीत आया तो अधिकांश शीला नाम की महिलाओं का उपहास किया जाने लगा. छोटे छोटे बच्चे अपनी बुआ, दादी, मामी आदि के आगे वह गीत गाकर उन्हें चिढ़ाने लगे. "पप्पू कैंट डान्स साला" के साथ भी वही हुआ. भारत में शीला और पप्पू नाम बहुत लोगों के हैं. ऐसे नामों से जब कोई गीत आता है तो जाने अनजाने उनका उपहास करने का लोगों को अवसर मिल जाता है. क्या यह एक प्रकार का शोषण नहीं है? शोषण केवल शारीरिक नहीं होता. शारीरिक शोषण तो निन्दनीय है ही परन्तु परदे पर (फिल्मों में) आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग, असहज करने वाले दृश्य, अथवा किसी के नाम का उपहास करना, अप्रत्यक्ष रूप से अनेकों लोगों के साथ शोषण कर जाता है. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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