हमारे परिचय में एक महिला ने एक बार अपनी बेटी के विषय में बताते हुए कहा, "उसे अगर किसी भूल पर डाँटने लगूँ तो वह मुझे सौतेली माँ होने का ताना देने लगती है." बेटी के पिता भी साथ ही बैठे थे और उनके चेहरे पर विवशता स्पष्ट दीख पड़ती थी. सुनीता (काल्पनिक नाम) की विदाई का समय हुआ तो उसकी माँ दहाड़े मार मार कर रोने लगी, "अब तो बेटी पराई हो गयी. सास उसका क्या हाल करेगी. अब तो वह मायके आ भी न सकेगी". जाने और भी क्या क्या कहने लगी तो लोग समझाने लगे, "जानकी, अच्छे लोगों में रिश्ता हुआ है तो ऐसा क्यों कहती हो", पर जानकी तो जानकी थी. जब सुनीता पहली बार मायके आयी तो जानकी ने उसे कुरेदना चालू किया, "सास कैसी है, ससुर कैसे हैं. काम करने को बाई है या स्वयं ही करना पड़ता है." सुनीता थोड़ी समझदार थी. कहने लगी, "सास ससुर माता पिता ही हैं. कोई कष्ट नहीं. बेटी से बढ़कर प्रेम दे रहे हैं." जानकी बोली, "नया नया मुल्ला अल्लाह ही अल्लाह करता है. अभी नयी हो न, इसलिए प्रेम मिल रहा है फिर देखना मुझे याद करोगी." क्या जानकी चाहती थी कि सुनीता अपनी सास से घृणा करे? एक बार रेलगाड़ी में कहीं जाते हुए मैं ऊपर वाली शायिका (बर्थ) पर सोया था. थोड़ी देर में आँख खुली तो कुछ युवक नीचे बातें कर रहे थे. उनमें से एक कह रहा था, "तू कश्मीर से है और मुसलमान है तो आतंकवादियों को भी जानता होगा." आगे की बातचीत निरर्थक थी पर जो मैं यहाँ कहना चाहता हूँ वो यह है कि हममें से बहुत लोग पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं और कई अवसरवादी लोग पूर्वाग्रह का लाभ उठाते हैं. माँ अपनी संतान से कितना प्रेम करती है यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं परन्तु विवाह के बाद की स्थिति को सभी माताएँ ठीक ठीक समझ नहीं पातीं. सभी माताएँ चाहती तो हैं कि बेटी ससुराल में सुखी रहे पर सास भी माँ ही होती है, ससुराल भी अपना परिवार ही है, यह अपनी बेटी को हर माँ समझा नहीं पाती. संसार की हर सास देवी है और ससुराल में सभी बहुओं को पलकों पर ही रखा जाता है यह कहने का लेखक का तात्पर्य नहीं परन्तु सभी सास दुष्ट हों अथवा सभी बहुएँ ससुराल में कष्ट ही पायें यह भी तो आवश्यक नहीं. आजकल तो वैसे भी अधिकांश (नौकरी वाले) बेटे अपने माता पिता को छोड़ने को विवश हैं ऐसे में सास भला कितना मिल पाती है बहू से. बेटी के लिए माँ उसकी सहेली जैसी ही होती है. यह कहें कि सबसे पक्की सहेली होती है तो भी अनुचित नहीं होगा. पर माँ भी इंसान ही है. कई बार ऐसा होता है कि बेटी ससुराल में होने वाली बड़ी छोटी बात अपनी माँ से साझा करती है और माँ कुछ बेतुकी सलाह दे बैठती है अथवा ससुराल वालों के प्रति बेटी के मन में विष घोलने का काम करने लगती है जिसके कारण बेटी का घर संसार सँवरने की अपेक्षा बिगड़ना आरम्भ हो जाता है. प्रभञ्जनीजी (काल्पनिक नाम) का वय अब सत्तर से कुछ अधिक हो चला है. मैंने उनसे पूछा कि सास को अपयश मिलने का क्या कारण हो सकता है. उन्होंने मुझे बताया, "जब सरला (प्रभञ्जनीजी की बेटी) मेरे घर पर पर थी तो मैं उसे काम तो कहती थी पर अधिकतर काम बहू ही कर दिया करती थी. सरला को भी आराम था. मन हुआ उतना किया बाकी बहू पर टाल दिया. बाद में सरला बहू बनी तो काम का दायित्व उसका था. उस घर (जिस घर सरला बहू बन कर गयी थी) की बेटी जितना करती थी करे बाकी सरला को करना होता था." मैंने पूछा, "तो इसमें सास को अपयश कैसे मिला". प्रभंजनीजी बोलीं, "बेटे, माँ बेटी को प्रेम तो बहुत करती है परन्तु संस्कार वास्तव में सास ही डालती है. रीति रिवाज की समझ बेटी को सास जितना देती है उतना माँ नहीं दे सकती. मैं सास भी हूँ और माँ भी; इसलिए इस बात को अच्छी तरह समझ सकती हूँ. कई बार मुझे अपनी बहू को कड़े शब्द कहने पड़ते हैं जिससे हो सकता है मैं उसे बुरी लगूँ परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि मैं उसे प्रेम नहीं करती. लेकिन सास के नाम का इतना दुष्प्रचार हुआ है कि कुछ भी कहो सास तो बुरी ही है." मैंने सोचा, "जब व्यक्ति किसी के नीचे काम करता है तो प्रायः अधिकारी की बुराई करने में लग जाता है पर जब स्वयं अधिकारी बनता है तो उसे पता चलता है कि उसके कर्मचारी उसकी भी निंदा करते हैं. नेता हो, अधिकारी हो, अधिकांश लोग यह मान कर ही चलते हैं कि यह दुष्ट होगा. ऐसे ही ससुराल का भी है." मैंने आगे कुछ नहीं कहा और उन्हें नमस्कार कर वहाँ से चल दिया. मैं ऐसी कई महिलाओं को जानता हूँ जो अपनी सास की प्रशंसा में कहती हैं कि उन्हें खाना बनाना उनकी सास ने ही सिखाया. दुर्भाग्यवश भारतवर्ष में बहुओं से सम्बंधित कई दुर्घटनायें/अत्याचार सुनने में आते हैं परन्तु पांचों अंगुलियाँ एक जैसी नहीं होती. आज जो बहू है वही आगे जा कर सास बनेगी. कल की बहू आज की सास है. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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