जटाधरं पांडुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम् । सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥ जिनके कारण भगवान कृष्ण को यदुवंशी कहा जाता है उन महाराज यदु ने जब जंगल में अवधूत दत्तात्रेय को देखा तो आदरपूर्वक उन्हें प्रश्न किया कि बिना कोई कर्म किये वे इतने बुद्धिमान, गुणवान और रूपवान कैसे हैं? जब कर्म कर सकते हैं तो फिर कोई प्रयास करते क्यों नहीं? क्यों भटकते रहते हैं? दत्तात्रेयजी अत्रि ऋषि और सती अनुसूया के पुत्र थे. सुनते हैं उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो का अंश समाहित था. शिव ने स्वयं उनको तंत्र विद्या का उपदेश दिया था जिसे दत्तात्रेय तंत्र के नाम से जानते हैं. यदु भी धर्मात्मा थे. दत्तात्रेय ने जब यदु का प्रश्न सुना तो उन्हें अपने २४ गुरुओं से पाई शिक्षा के विषय में बताया जिसको मैंने कविता के रूप में कहने का प्रयास किया है.
संसार में समय समय पर बहुत से योगी हुए परंतु भगवान दत्तात्रेय जैसे कोई योगी न हुआ होगा. भगवान कृष्ण से उद्धव ने जब संन्यास का उपदेश माँगा तो भगवान कृष्ण ने उन्हें महाराज यदु और अवधूत दत्तात्रेय जी का यही संवाद सुनाया था. भगवान कृष्ण ने कहा था कि इस उपदेश के प्रभाव से उनके पूर्वज महाराज यदु भी आसक्तियों से मुक्त हो गए थे. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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