यूँ तो दशरथ पुत्र चारों शूर और विद्वान थे किन्तु उन चारों में भी श्रीराम परम महान थे पिता के भक्त, विद्या में निपुण, लोगों को प्यारे यूँ ही नहीं श्रीराम में दशरथ के बसते प्राण थे मोहवश दशरथ जिन्हें समझते प्रिय संतान थे वह राम विश्वामित्र की दृष्टि में स्वयं भगवान थे और एक शुभ अवसर जान आ उन्होंने सभा में कहा, महाराज बोलो राम को ले जाऊँ क्या मैं दो निशाचर बड़े दुष्ट हैं देते मुझको बड़े कष्ट हैं दिन प्रतिदिन यज्ञवेदी को पहुँचाते कोई अनिष्ट हैं उन्हें पाठ पढ़ा सकता हूँ मेरा क्रोध दिखा सकता हूँ किन्तु नियम से बंधा हूँ तो तुम्हारे द्वार तो आ सकता हूँ बोलो क्या तुम राम को दोगे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करोगे दस रात्रि के समय को केवल अपना सुत मेरे संग भेजोगे दशरथ को कोई प्यारा जगत में था तो वो श्री राम थे उनसे वियोग हुआ तो फिर संसार में किस काम के एक पल को दशरथ को कुछ सुझाई ना दिया बेसुध हो कर गिरे कुछ दिखाई सुनाई ना दिया फिर कुछ नियंत्रित कर स्वयं को यह वचन बोले राम तो एक नन्हा बालक है वह क्या राक्षस मार सकेगा अभी तो वह बस सीख रहा है जीत नहीं बस हार सकेगा अपनी सेना से कहता हूँ साथ कहें तो मैं चलता हूँ राम को ले जाना ही है तो राम के संग मैं भी चलता हूँ दशरथ ने बड़े जतन कर यह चार पुत्र पाए थे उस पर भी राम तो उनके कलेजे में समाये थे रावण से प्रेरित हो आते हैं मारीच और सुबाहु यह जान दशरथ मन ही मन बहुत घबराये थे विश्वामित्र समझ गए राजा पुत्रमोह में फँसा हुआ है इसीलिए श्रीराम को देखो ना देने पर अड़ा हुआ है क्रोध हुआ तब उनके मन को भरी सभा में बोले राजन् को रघुकुलवंशी भी तोड़े वचन को मालूम हुआ आज जन जन को गाधिसुत के क्रोध से तब धरती और अम्बर हिले स्थिति की विकटता जान तब वसिष्ठ दशरथ से मिले महाराज आप धर्मात्मा हो कर ऐसी भूल ना कीजिये बिना विचारे राम को विश्वामित्र का संरक्षण दीजिये कहता हूँ मैं राम के बल का मुझे पता है राम को कोई चोट नहीं पहुंचा सकता है फिर जब हाथ हो सिर पर कौशिक का तो महिमा उस बल की कोई बतला सकता है! इस सारे संसार में बोलो गाधिपुत्र से छुपा है कुछ भी इन्हें पता है, मुझे पता है रामचंद्र वास्तव में क्या हैं अब अपने संशय को त्यागो मोह से बाहर आओ जागो राम का ही कल्याण है इसमें मानो मेरी बात को मानो जो अभी तक आशंकाओं से और भय से ग्रस्त था वसिष्ठ के प्रिय वचन सुन वह दशरथ अब आश्वस्त था और तब अपने पिता की प्रतिज्ञा पालन के लिए राम गुरु संग चल दिए, श्री राम गुरु संग चल दिए |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
Categories
All
|