रविवार का दिन था. पत्नी मायके गई हुई थी. सुरेंद्र के पास समय ही समय था. यूँ ही मोबाइल फ़ोन पर संपर्क (कॉन्टेक्ट्स) में कौन कौन है यह देखते देखते राहुल वर्मा का नाम आया तो अंगुलियाँ कुछ क्षणों के लिए ठहर गयीं. सुरेंद्र अब दूसरे शहर में आ गया है और व्यस्तता के कारण दोनों को बात किये ३ वर्ष हो गए हैं. राहुल की याद आते ही वह किन्हीं विचारों में खो गया. सुरेंद्र और राहुल घनिष्ठ मित्र थे पर एक बात पर दोनों के विचार नहीं मिलते थे. सुरेंद्र को व्यक्ति विशेष की चर्चा करना अच्छा नहीं लगता था और राहुल का वही सर्वाधिक प्रिय विषय था. उदाहरण के लिए - राजन को तो बड़ी मालदार ससुराल मिली है, प्रवेश जैसे लड़के को ऐसी सुन्दर पत्नी कैसे मिल गयी, मोहन ने नई दुकान क्या खोल ली वह तो अब बड़ा आदमी हो गया है, मन्मथ को तो एक लाख की नौकरी लग गयी है आदि. आधी रात को उठा कर पूछ लो कि अमुक व्यक्ति के घर में क्या चल रहा है और राहुल न बताये इसकी संभावना बहुत कम थी. और ऐसा भी नहीं कि केवल अच्छी ही बातें पता हों. किस के घर में क्या क्लेश चल रहा है इसका भी पूरा विवरण राहुल के पास होता था. जहाँ भी और जिससे भी राहुल मिलता उसके प्रिय विषय यही होते थे. इस सबसे उसे मिलता क्या था? इसका ठीक ठीक जवाब राहुल के पास भी नहीं था. वह तो बस इतना जानता था कि किसी दूसरे के घर में अथवा जीवन में क्या चल रहा है यह सभी जानना चाहते हैं और वही जानकारी मनोरंजक ढंग से पहुँचाने का कार्य वह कर रहा था. इसमें उसे कोई धन तो नहीं मिलता था परंतु जितना ध्यान से लोग उसकी बात सुनते थे वह देख कर उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था. सुरेंद्र उसकी बातें सुन तो लेता था क्योंकि एक तो उसे जितना मना करो वह अपनी बात कह कर ही रहता था; दूसरे वह जिस तरह बोलता था उससे बड़ी हँसी आती थी परंतु मन से उसे किसी के निजी जीवन के बारे में जानने में कोई रूचि नहीं थी. सुरेंद्र का मानना था - जिसे भगवान ने जो देना है वह उसे मिल कर रहेगा फिर वो चाहे सुख हो अथवा दुःख. यदि कुछ भाग्य में नहीं है तो फिर लाख सिर पटक लो वह नहीं मिलना और कुछ मिलना लिखा है तो घर बैठे मिलेगा. संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसे कोई दुःख न हो तो फिर क्यों किसी को देख कर ईर्ष्या करना अथवा किसी के जीवन में कुछ बुरा हुआ है तो उस पर क्यों हँसना. ऐसा नहीं कि सुरेंद्र के पास राहुल से बात करने का समय ही नहीं है. वह औरों को भी तो फ़ोन (दूरभाष) किया ही करता है तो राहुल को भी कर ले. राहुल और सुरेंद्र दोनों का एक प्रिय मित्र था - नटराज. हुआ यूँ कि नटराज और नटराज की पत्नी (चन्द्रिका) के बीच किसी बात पर कहासुनी हो गयी. बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गयी कि चन्द्रिका घर छोड़ कर मायके चली गयी. नटराज के ससुरालवाले दबंग लोग थे. न जाने चन्द्रिका ने घर जा कर क्या कहा कि पत्नी को लेने गए नटराज को ससुरालवालों ने पहले तो जी भर कर अपमानित किया और फिर सम्बन्ध तोड़ने के लिए कह दिया. राहुल ने इस घटना को सब लोगों में चटखारे ले ले कर सुनाया. ऊपर ऊपर से तो वह नटराज को सहानुभूति देता और कभी कभी सहायता भी करता परंतु लोगों में एक एक बात पहुँचाने से भी पीछे न रहता. फलतः नटराज की समाज में बड़ी फजीहत हुई. सुरेंद्र को यह बात अच्छी नहीं लगी. उसने कई बार राहुल को यह कहकर टोका कि नटराज हमारा मित्र है, कम से कम उसे तो छोड़ दे. राहुल ने हर बार बात को अनसुना कर दिया. सुरेंद्र ने सोचा कि जो अपने मित्र नटराज के कठिन समय में उसका पीठ पीछे उपहास कर रहा है वह किसी के साथ भी ऐसा ही करेगा. "हो सकता है कल मेरे साथ भी ऐसा ही करे. अच्छा होगा कि मैं भी इससे दूर ही रहूँ". बस तभी से सुरेंद्र राहुल से बात करने से थोड़ा बचने लगा है. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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