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धर्म / समाज पर विविध विचार

​श्रीकृष्ण के पुत्र को श्राप क्यों मिला और इससे श्रीकृष्ण के देहत्याग का क्या सम्बन्ध?

15/5/2016

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​क्यों भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप मिला? ऐसा क्या श्राप था जो भगवान कृष्ण और बलराम को देह त्याग करना पड़ा. क्या भगवान कृष्ण को भी किसी का श्राप था? भगवान कृष्ण ने कैसे देह त्यागी यह तो बहुत लोगों को पता है किन्तु भगवान बलरामजी ने कैसे शरीर छोड़ा यह इतने लोग नहीं जानते. महाभारत की यह कथा यदि किसी ने सुनी हुई भी हो तो भी बड़ी विशेष है.  

साम्ब को ऋषियों का श्राप
​भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने अपने मित्रों के साथ मिलकर महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद की परीक्षा लेने का विचार बनाया. अपने से बड़ों की परीक्षा लिया जाना यूं तो कोई बहुत अच्छी बात नहीं और यदि बड़ों की परीक्षा बड़ों का उपहास करने के उद्देश्य से ली जाए तो फिर परिणाम बहुत भयावह भी हो सकते हैं.

​साम्ब ने अपने मित्रों के साथ मिल कर एक खेल रचा. एक गर्भवती स्त्री का रूप धरा साम्ब ने और उसके मित्र उसे ले कर ऋषियों के समक्ष उपस्थित हो गए.

इन्होंने ऋषियों के ज्ञान की परीक्षा लेने को पुछा, "सर्वस्व जानने वाले आप महाज्ञानी साधु हैं. आपसे हम यह जानने के उद्देश्य से यहां आये हैं कि इस बभ्रु की स्त्री को पुत्र होगा अथवा पुत्री होगी".

क्षमाशील व्यक्ति तो अपना उपहास होने पर भी मौन रह जाता है परंतु सामर्थ्यवान क्रोधी से उपहास करना घातक हो सकता है.  हमारे प्राचीन ऋषियों से बड़े बड़े सम्राट यूं ही नहीं कांपते थे.

​साम्ब के मित्रों की मंशा जानकर ऋषि अत्यंत क्रोधित हुए और बोले, "हम जानते हैं गर्भवती के रूप में छुपा यह भगवान श्री कृष्ण का पुत्र साम्ब है. हम श्राप देते हैं कि इस साम्ब को एक भयंकर मूसल उत्पन्न होगा जो तुम्हारे कुल के विनाश का कारण बनेगा. हाँ, भगवान कृष्ण और बलराम पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा".

साथ ही ऋषियों ने बलराम जी और श्री कृष्ण के शरीर त्यागने की भविष्यवाणी भी करी.   

ऋषियों के श्राप के आगे किसी का बस तो चलता नहीं, और ना ही ऋषि श्राप दे कर वापस ही लेते थे. भगवान कृष्ण का पुत्र साम्ब भी अपने साथियों सहित लौट आने के सिवा और क्या करता. 

श्री कृष्ण को श्राप के बारे में बताया जाना
ऋषियों ने इतना ही नहीं किया. उन्होंने श्री कृष्ण को यह सब समाचार कह सुनाया और आश्चर्य की बात है कि भगवान कृष्ण ने इसके लिए कोई उपाय नहीं किया न ही ऋषियों से कोई प्रार्थना ही करी. उन्होंने बस इस समाचार को सुना और यादवों को कह सुनाया. साथ ही यह भी कहा कि ऋषियों का कहा अन्यथा नहीं होगा. 

​भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में किस तरह की योजनाएं बनायीं हुई थी यह बस कृष्ण ही जानते हैं.

समय आने पर श्राप के प्रभाव से साम्ब ने मूसल उत्पन्न किया. चूंकि सभी को इस श्राप का पता चल गया था तो सभी ओर से सावधानी लेना आवश्यक था. महाराज उग्रसेन को जैसे ही पता चला उन्होंने उस मूसल को चूरा चूरा करवा कर समुद्र में फिंकवा दिया. 

परन्तु मूसल फिकवा दिया तो क्या? काल को तो आना ही था. वो आया. भयंकर वेश वाला काल सभी घरों में नित्य चक्कर लगाने लगा. उसके प्रभाव से भयंकर परिस्थितियां उत्पन्न होने लगीं.

​विनाश काले विपरीत बुद्धि! उस समय यदुवंशी भी पापकर्म करने में संकोच नहीं करते थे. गुरु हो अथवा ब्राह्मण, उन्हें किसी का भी भय नहीं था. किसी का भी अपमान करने में उन्हें लज्जा नहीं आती थी. 

भगवान श्री कृष्ण और बलराम का प्रभाव सभी को पता था अतः उन्हें अपमानित करने का साहस किसी में न था.
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Photo Source: www.santabanta.com
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Photo Source: www.hinduhumanrights.info
प्रजा की यह हालत देख कर भगवान कृष्ण मन ही मन गांधारी को याद करने लगे. उन्होंने अपने आप से​ कहा, "गांधारी! प्रतीत होता है तुम्हारा श्राप अपना प्रभाव दिखा रहा है. तुमने कुरुकुल के विनाश से व्यथित हो कर मुझे श्राप दिया था न कि यादवों का भी ऐसे ही विनाश होगा. तो तुम्हारा वचन असत्य कैसे होगा". 

भगवान तो सब जानते ही थे.
से भला क्या छुपा था. उन्हें सबका आदि अंत पता था. अतः उन्होंने कुछ भी रोकने का प्रयास न किया. उन्होंने यदुवंशियों को इतनी सलाह अवश्य दी कि परिवारसहित तीर्थयात्रा करने को प्रस्थान करें. 

एक दिन जब सभी लोग एकत्र बैठे थे तो  बातों बातों में सात्यकि और कृतवर्मा में विवाद हो गया. विवाद का परिणाम सदैव अच्छा नहीं होता और विवाद यदि वीरों में हो तो कहना कठिन ही है कि क्या होगा.  

​वाद-विवाद में उत्तेजित हो कर सात्यकि ने कृतवर्मा का वध कर डाला. समय तो विपरीत चल ही रहा था. सभी वीर गुट बना कर एक दुसरे को मारने लगे. इसी सब में सात्यकि और भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का भी वध हो गया. 

अपने पुत्र की यह गति देख कर यदुनंदन ने क्रोध में भरकर अपनी मुट्ठी से एरका (घास) उखाड़ी जो​ तत्क्षण ही मूसल में परिवर्तित हो गयी. उस मूसल से उन्होंने बहुतों का संहार किया.

कुछ ऐसा चमत्कार हुआ (सम्भवतः श्राप के प्रभाव से) कि जो भी क्रोध में भरकर एरका उखाड़ता वो मूसल बन जाती. ​सभी एक दुसरे का संहार कर रहे थे. जब समस्त वीरों का नाश हो गया तब बभ्रु और दारूक की विनती पर वे भगवान बलरामजी को ढूँढ़ने निकल पड़े. ​
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Photo Source: www.somnath.org
श्री कृष्ण और बलराम जी का देह त्याग 
बलराम जी से भेंट कर के भगवान ने अपने कुछ कर्तव्यों का निर्वाह किया और पुनः बलराम जी के पास आये. शेषनाग के अवतार परम तेजस्वी बलराम जी वन में समाधि की अवस्था में बैठे थे. उस समय भगवान कृष्ण ने देखा कि योगयुक्त बलराम जी के मुख से सहस्त्रों शीर्ष वाला, रक्त के सामान मुख वाला, एक श्वेत वर्ण का सर्प निकला और समुद्र की ओर चला गया. ऋषियों ने भी अपने श्राप में कहा था कि बलराम जी देह छोड़ कर समुद्र में समा जाएंगे.

बलराम चले गए थे तो कृष्ण भला पृथ्वी पर क्या करते. सब कुछ जानने वाले भगवान श्री कृष्ण गांधारी तथा महर्षि दुर्वासा के श्राप का स्मरण कर इंद्रियों को वश में कर योगमय हो कर वन में लेट गए. उसी समय जरा नाम के एक शिकारी ने हिरण छुपा है ऐसा समझ कर उन पर बाण​छोड़ा.

​बाद में उसे मालूम हुआ यह तो पीताम्बर ओढ़े
कोई योगी है . जब उसे पता चला यह कृष्ण हैं तो बहुत दुःखी हुआ. उसे बहुत पश्चात्ताप हुआ परंतु पश्चात्ताप सभी बातों का हल थोड़े ही है. भगवान कृष्ण जिन्होंने अनेकों का संहार किया अथवा कहें कि उद्धार किया, एक शिकारी के हाथों छोड़े गए बाण से अपने प्राण त्याग कर चल पड़े. 
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    Author - Archit

    लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II
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    ज्योतिष के विषय से मैंने इस वेबसाइट पर लिखना शुरू किया था परंतु ज्योतिष, धर्म और समाज को अलग अलग कर के देख पाना बड़ा कठिन है. शनैः शनैः मेरी यह धारणा प्रबल होती जा रही है कि जो भी संसार में हो चुका है, हो रहा है अथवा होने वाला है वह सब ईश्वर के ही अधीन है अथवा पूर्वनियोजित है. लिखना तो मुझे बाल्यकाल से ही बहुत पसंद था परंतु कभी गंभीरता से नहीं लिया. कविताएं लिखी, कहानियां लिखी, निबंध लिखे परंतु शायद ही कभी प्रकाशन के लिए भेजा. मेरी कविताएं और निबंध (जिनका संकलन आज न जाने कहाँ हैं) जिसने भी देखे, प्रशंसा ही की. यह सब ईश्वर की कृपा ही थी. धार्मिक क्षेत्र में मेरी रुचि सदा से ही रही है परंतु पुत्र होने के बाद थोड़ा रुझान अधिक हुआ है. ना जाने कब ईश्वर ने प्रेरणा दी और मैंने इस पर लिखना शुरू कर दिया.

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