वह भगवान को मानता तो बहुत था पर भगवान के लिए अपने घर में थोड़ी सी जगह नहीं बना पा रहा था अजब लाचारी थी ऐसा नहीं कि उसने भगवान से प्रार्थना ना करी हो पर भगवान भी उसकी सुनने को तैयार नहीं था ऐसा घर ही नहीं दिलाता था जिसमें पूजा का कमरा हो या कोई और छोटा कक्ष वह जिसे भगवान के लिए खाली छोड़ सके औरों के यहाँ उसने देखा था भगवान को टांड पर, रसोई में आले में, कोने में कमरे में सोने के और यहाँ तक कि अलमारी में भी यह सब उसे अच्छा नहीं लगता था पर उसने भी तो उन्हें सोने के कमरे में ही रखा था जाने को तो वह बाहर मंदिरों में चला जाये शांति तो है पर वहाँ वह स्वतंत्रता कहाँ ईश्वर के पास देर तक बैठने की वहीं घर के मंदिर में कौन रोक सकता था उसे उसे लगता था घर के मंदिर में क्यों नहीं हो सकती वही शांति वही शक्ति जो सिद्ध मंदिरों में मिलती है बस किसी प्रकार घर के देवस्थान का उचित सम्मान कर पाए तो क्यों नहीं फिर देव साक्षात् उसके घर आयें उसी दिन उसने तय किया अपने छोटे से घर के दो कमरों में से एक कमरा भगवान को ही समर्पित कर देगा और अपनी गृहस्थी दूसरे कमरे से संचालित करेगा थोड़ी समस्या होगी पर भगवान को जितना देना है उससे कम तो नहीं देगा और कुछ हो ना हो इससे घर में दिव्यता का तो वास होगा जब से उसने ऐसा किया है मानसिक रूप से सुखी है कितना ही व्याकुल क्यों ना हो भगवान के कमरे में जा कर शांतचित्त हो जाता है और ईश्वर के गुण गाता है |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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