मानव को ईश्वर ने शब्द दिए. विविध भाषायें दीं जिनसे वह अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सके. उनमें से कुछ भावनायें आहत होने की थीं तो कुछ दूसरों को आहत करने की और शब्दों में वह क्षमता थी कि उन भावनाओं को भड़का सके. अहंकार तो ईश्वर ने सभी को दिया है. अपने अहम् को किसी बात पर ठेस पहुंची तो दूसरे को और अधिक ठेस पहुंचे ऐसा प्रयास बहुत लोग करते हैं. उसके लिए ऐसे शब्दों का चुनाव आवश्यक था जो थोड़े हों परन्तु प्रभावशाली हों (देखन में छोटे लगै घाव करें गंभीर). घर की स्त्रियों की रक्षा का उत्तरदायित्त्व प्रायः पुरुषों के हाथ में होता था. ऐसे में यदि घर की स्त्रियों को ले कर कुछ कहा जाता तो निश्चय ही प्रभावशाली होता. अतः हो सकता है पुरुषों ने एक दूसरे को माँ, बहन के नाम पर अपशब्द कहना शुरू कर दिया हो. कुछ अपशब्द बेटियों को ले कर भी बने परन्तु माँ और बहन से सम्बंधित अपशब्द अधिक प्रचलित हुए. मैं तेरी माँ/बहन को *&#$& दूँगा अथवा तेरी माँ की &@#^ आदि न जाने कब चल पड़े. कुछ अपशब्द जैसे भो#&^@, चू#*$ आदि ऐसे हैं जिनमें सीधे सीधे माँ नहीं थी परन्तु थी. गालियाँ अथवा अपशब्द स्त्री पुरुष के सम्भोग और गुप्तांग के अतिरिक्त और क्या है? आपने देखा होगा आये दिन कितने ही झगड़े इस बात पर होते हैं कि किसी ने किसी को गाली दी. आश्चर्य की बात यह है कि महिलाओं ने विकास तो बहुत किया. आधुनिकता के नाम पर बुराइयों (शराब, धूम्रपान आदि) को भी खूब अपनाया परन्तु गाली देने के समय उन्होंने भी माँ और बहन वाली गालियों को ही प्राथमिकता दी अथवा एक दूसरे के ही चरित्र पर कीचड़ उछाला (प्रायः र$#^ अर्थात् वैश्या जैसा एक शब्द कहकर). खेद इस बात को लेकर है कि लोगों ने इसे निजी विषय बना कर छोड़ दिया. किसी को क्या अधिकार है किसी की माँ अथवा बहन के विषय में कुछ अप्रिय कहने का. गाली देने वाले लोगों का मानना है कि वह मन से नहीं कहते. वह तो ऊपर ऊपर से कहते हैं. क्योंकि गाली तो सभी देते हैं. इसमें बड़ी बात क्या है? अभी मातृ दिवस आने वाला है. लोग अपनी अपनी माताओं के विषय में बड़ी बड़ी बातें लिखेंगे. वे लोग भी जो माँ की गाली देने और सुनने में परहेज नहीं करते. क्या माँ, बहन, बेटी के नाम पर गाली देना महिलाओं के सम्मान से सम्बंधित विषय नहीं है? जातिसूचक शब्दों से किसी को बुलाना एक गंभीर अपराध है परन्तु किसी की माँ, बहन अथवा बेटी को ले कर की गयी अभद्र टिपण्णी (अथवा गाली) कोई अपराध नहीं. ऐसा क्यों? |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2019
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