अवगुण जो रोक पाए मैं वो झिल्ली नहीं हूँ नए कीर्तिमान बनाये मैं वो गिल्ली नहीं हूँ ईश्वर जो मुझसे कराये वही स्वीकार करूँ महान स्वप्न बुनने को मैं शेखचिल्ली नहीं हूँ गुरु के ज्ञान का अनन्त उपकार है 'अर्चित' उड़ाता ज्ञानदाता की कभी खिल्ली नहीं हूँ तनिक भी सही रगड़ हो तो रौशनी भर दूँ जलने में जो समय ले मैं वो तिल्ली नहीं हूँ मैंने कर्मों की धौंस दी तो नियति बोली अपनी मर्ज़ी वो करूँगी दुमछल्ली नहीं हूँ |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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