'अर्चित' मैं तुझसे कहता हूँ अब भी उठ जा कुछ देर नहीं बीती बातें तो बीत गयीं आने को क्या कुछ पता नहीं जो है केवल इस क्षण में है चिंगारी केवल तृण में है इसे आग बना दे आग आग तू समय के रहते जाग जाग सुख दुःख का चक्कर छोड़ छोड़ हरि से नाता अब जोड़ जोड़ चाहे राम जपो चाहे श्याम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो कोई कुछ कहे तो बुरा ना मान उसको भी अपने जैसा जान मृत्यु तो सब ही पाएंगे फिर नए जीवन को जायेंगे फिर याद कहाँ कुछ रहना है क्या भला बुरा कुछ कहना है कितने जीवन जो निकल गए कितने नाते जो बदल गए तू मूर्ख देह में उलझ गया झूठे को सच्चा समझ गया अब भी कहता हूँ नाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो नित हरि से विनती कर इतनी विपदा आयें चाहे जितनी मन विचलित ना होने पाए हरि नाम में नित शांति पाए करते कोई भी काम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो छोड़ के सारे काम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो करते करते विश्राम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो नित सुन्दर मंगलधाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो हरि नाम जपो |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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