देखो तुम फिर भड़क गए मेरी शरारतों पर अब ध्यान देना छोड़ो मेरी हरकतों पर जब तक मुझे समझ नहीं आ जाती मैं सुधरने वाला नहीं हूँ और समझ मुझे तुम्हारे समझाने से नहीं आने वाली तुम्हारे डाँटने से अथवा मुझे फटकारने से तुम्हारा मन बहल जायेगा थोड़ा गुस्सा निकल जायेगा परन्तु मुझे क्या पता उचित अनुचित का मैं तो ज़्यादा से ज़्यादा रो पड़ूँगा, आँसू बहा दूँगा तुम मुझे चुप कराओ अथवा ना कराओ मैं दो चार क्षण बाद वैसा ही हो जाऊँगा किन्तु उसके बाद तुम्हारा मन अवश्य ही पश्चात्ताप की अग्नि में जल उठेगा इसलिए कहता हूँ मेरी हरकतों का मेरी शरारतों का आनंद लो और मुझे देख कर परमात्मा की रचना को उसकी लीला को नमन करो |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
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