हैं नम हैं लाल आँखें मगर विश्वास करो पीड़ित हूँ ज़ुकाम से, कोई रोया नहीं हूँ नाक और आँख बंद हैं पर कान हैं खुले तुम्हें ही सुन रहा भाई कहीं खोया नहीं हूँ कर्म के प्रति निष्ठा को मैं भूला नहीं हूँ आँखें ही बंद की हैं अभी सोया नहीं हूँ भारी सिर ने छीन ली है मेरी सारी हँसी वरना गंभीरता से मैं भरा इतना नहीं हूँ साधारण से रोग की छुट्टी नहीं मिलती पर कोई कह दे ज़ुकाम में रोया नहीं हूँ |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
November 2020
Categories
All
|