जब हम जन्मपत्रिका देखते हैं तो उसमें स्त्री ग्रह, पुरुष ग्रह, स्त्री राशि, पुरुष राशि आदि के अनुसार जातक के स्वभाव, शुभाशुभ आदि का विचार करते हैं. महापुरुष कह गए हैं और विद्वान लोग भी कहते हैं कि स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं परन्तु भेद तो है. ईश्वर ने ही भेद रखा है. यदि हम आँखें बंद कर लें तो भेद मिट तो नहीं जायेगा. दोनों के गुण धर्म अलग हैं परन्तु ज्योतिष में हम जिन योगायोग का विचार पुरुष की कुण्डली में करते हैं उन्हीं योगायोग का विचार स्त्री की कुण्डली में करते हैं. स्त्री और पुरुष दोनों की कुण्डलियों में स्त्री और पुरुष ग्रह होते हैं. इस संसार में ऐसे कम ही लोग होंगे जो पूरी तरह से स्त्री हों अथवा पूरी तरह से पुरुष. किस व्यक्ति (चाहे वह स्त्री हो या पुरुष) की पत्रिका में कौन से गुणों की अधिकता होगी इसके अनुसार उसका आचरण होगा यह कह सकते हैं. एक बार मैं अपने घर में घुसा तो एक पुरुष माताजी और पिताजी के सामने बैठा बातचीत कर रहा था. देखने में लगता था कोई दबंग व्यक्ति है. मैंने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था. मैंने नमस्कार किया तो माताजी ने उनसे मेरा परिचय करते हुए कहा यह अमुक आंटी हैं. बाद में मुझे पता चला वह वास्तव में अपने क्षेत्र की दबंग महिला थीं. जिन महिलाओं में पुरुषोचित गुण अधिक होते हैं उनका आचरण भी उसी प्रकार का होता है इसी प्रकार जिन पुरुषों में स्त्रियोचित गुण अधिक होते हैं उनका आचरण भी स्त्रियों की प्रकृति के निकट होता है. मैं एकाधिकार (सबको समान अधिकार मिले) के पक्ष में हूँ किन्तु कोई महिला केवल इसलिए आगे बढे क्योंकि वह महिला है यह मेरा मत नहीं. मान लीजिये कोई महिला आगे बढ़ना ही नहीं चाहती और आप उसे धक्का दिए जा रहे हैं. महिला का तो उदाहरण इसलिए रखा क्योंकि आज महिला दिवस है परन्तु यह तो किसी पुरुष के साथ भी हो सकता है. जिन्हें आगे बढ़ना होता है (या कहें कि ईश्वर जिन्हें आगे बढ़ाना चाहता है) वह आगे बढ़ ही जाते हैं अथवा नाम कमा ही लेते हैं. कई बार उन्हें ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जो सहयोग करने वाले हों. कई बार संयोग ऐसे बन जाते हैं कि वह महिला आगे बढ़ ही जाती है. फिर चाहे कोई भी देश हो, काल हो, परिस्थिति हो व्यक्ति ईश्वर की कृपा से (जो उन्हें गुण मिलते हैं अथवा संयोग मिलते हैं उनके बल पर) अपना नाम इतिहास में दर्ज करा ही लेता है. फिर वह चाहे गंगूबाई हंगल हों, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, अहिल्याबाई होल्कर, शहनाज़ हुसैन, रानी लक्ष्मीबाई, खालिदा ज़िआ, रानी विक्टोरिया, इंदिरा गाँधी, सुचेता कृपलानी, दुर्गाबाई देशमुख, रज़िया सुल्ताना, संत जनाबाई, संत बहिणाबाई, मीराबाई, सरोजिनी नायडू हों या कोई और. कई घरों में आपने देखा होगा, महिलायें सब संभाले हुए होती हैं. किसी से कुछ बात करनी हो तो पुरुष संकोच करता रह जाता है परन्तु महिला आगे बढ़कर और कभी कभी तो चार बातें सुनाकर भी आ जाती है. मात्र घर के बाहर नौकरी करना ही महिलाओं की सफलता का मापदण्ड नहीं है. यह तो संकुचित मानसिकता है. शिवाजी को छत्रपति शिवाजी बनाने के पीछे जीजाबाई का बहुत बड़ा हाथ था. जिस प्रकार महिलाओं में गुण होते हैं उसी प्रकार दुर्गुण भी होते हैं. पुरुषों में भी ऐसा ही है. ईश्वर के रचे छः दोषों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर) में से कोई न कोई तो मनुष्य में होता ही है फिर वह चाहे स्त्री हो अथवा पुरुष. अंत में मैं यही कहूँगा कि किसी का भी सम्मान उसके गुणों से होता है. स्त्री और पुरुष गुणों का नाम है. कोई पुरुष के शरीर में स्त्री भी हो सकती है और कोई स्त्री के शरीर में पुरुष. |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2019
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