राम राम श्री राम राम श्री राम नाम का कीर्तन देगा मन की आँखें खोल, रे मन राम राम तू बोल मानव जनम बड़ा अनमोल, रे मन राम राम तू बोल दिया वचन पिता ने जो वो, निभाना है तो निभाना है राम को फिर संकोच कहाँ, वन जाना है तो जाना है भाई अकेला जाये न वन में, लक्ष्मण सोचें बात यही राम अकेले वन में भटकें स्वीकार करे न वैदेही नगरवासियों में भी सबके भीग गए थे कपोल राम राम तू बोल मेरे मन राम राम तू बोल जाना था सो गए राम, अब समय ही *उनसे रूठा था राम गए तो प्राण गए, दशरथ का प्रेम अनूठा था भरत शत्रुघ्न वहाँ नहीं थे, जब यह घटना घटित हुई बाद में जब मालूम हुआ तो आँखें अश्रुपूरित हुईं कैकेयी के वचनों पर **उनका रक्त रहा था खौल राम राम तू बोल, मेरे मन राम राम तू बोल *उनसे - दशरथ से, अयोध्यावासियों से **उनका - भरत का भरत स्वयं को इस सारी घटना का दोषी पाते थे राम के आगे बार बार वह क्षमा मांगते जाते थे कितने प्रयास किये भरत ने राम न वापस आने थे दशरथ वचन निभाने वन में चौदह वर्ष बिताने थे सब त्याग भरत ने कहा कि राजा राम है न कोई और राम राम तू बोल मेरे मन राम राम तू बोल रामकथा तो जितनी गाओ उतना कम मेरे भाई धन्य जटायु जिसने राम सन्निधि में मुक्ति पाई भरत, शत्रुघ्न, हनुमान, विभीषण, धन्य राम के प्रेमी दुःखविनाशक शरणागतरक्षक राम अरिष्टनेमि राम राम ही रटता जा बस राम राम ही बोल राम राम तू बोल मेरे मन राम राम तू बोल रामायण सा ग्रन्थ कहाँ है, राम सा कोई चरित्र कहाँ राम नाम सा पावन क्या है, राम सा कोई सुचित्र कहाँ हनूमान सा भक्त कहाँ है, भरत सा कोई भाई कहाँ दशरथ जैसा पिता है किसका, सीता जैसी माई कहाँ अहंकार को छोड़ दे 'अर्चित', सत्य को तू टटोल राम राम तू बोल मेरे मन, राम राम तू बोल |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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