गोविन्द सुन्दर छवि तुम्हारी मुझमें अंकित हो चुकी मैं तो मन ही मन तुम्हें कब की समर्पित हो चुकी तेरे सिवा अब और कोई क्या किसी से काम रे हे श्यामसुन्दर साँवरे! घनश्याम सुन्दर साँवरे! तुमसे निवेदन है, केवल तुम्हारे हाथ मेरा वरण हो आ जाओ माधव समय है अब रुक्मिणी का हरण हो सुनकर सन्देसा रुक्मिणी का कृष्ण कुछ भावुक हुए अपने मन की कहने को ब्राह्मण की ओर उन्मुख हुए हे दूत ब्राह्मण कह रहा हूँ बात मन की आपको विदर्भकन्या ने कहा है मेरे मुँह की बात को नींद आये रात को इतना सुखी मैं भी नहीं चित्त मेरा खोया रहता रुक्मिणी में ही कहीं युद्ध करना जो पड़े तो युद्ध भी कर जाऊँगा विदर्भराजकुमारी को वर कर तो मैं ही लाऊँगा यही रुक्मिणीजी आगे जाकर श्रीकृष्ण की भार्या बनीं जिनके लिए कहते थे केशव, "मेरी अनन्य प्रेयसी" जिनके समान श्रीकृष्ण को कोई और भाता था नहीं जय रुक्मिणी जय रुक्मिणी जय रुक्मिणी जय रुक्मिणी |
Author - Architलाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः I येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः II Archives
February 2021
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